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Showing posts from 2021

नदी बोली समन्दर से | Kunwar Bechain

नदी बोली समन्दर से, मैं तेरे पास आई हूँ। मुझे भी गा मेरे शायर, मैं तेरी ही रुबाई हूँ।। मुझे ऊँचाइयों का वो अकेलापन नहीं भाया लहर होते हुये भी तो मेरा मन न लहराया मुझे बाँधे रही ठंडे बरफ की रेशमी काया। बड़ी मुश्किल से बन निर्झर, उतर पाई मैं धरती पर छुपा कर रख मुझे सागर, पसीने की कमाई हूँ।। मुझे पत्थर कभी घाटियों के प्यार ने रोका कभी कलियों कभी फूलों भरे त्यौहार ने रोका मुझे कर्तव्य से ज़्यादा किसी अधिकार ने रोका। मगर मैं रुक नहीं पाई, मैं तेरे घर चली आई मैं धड़कन हूँ मैं अँगड़ाई, तेरे दिल में समाई हूँ।। पहन कर चाँद की नथनी, सितारों से भरा आँचल नये जल की नई बूँदें, नये घुँघरू नई पायल नया झूमर नई टिकुली, नई बिंदिया नया काजल। पहन आई मैं हर गहना, कि तेरे साथ ही रहना लहर की चूड़ियाँ पहना, मैं पानी की कलाई हूँ। --कुँवर बेचैन  

आओ आत्महत्या करें!| Stop suicide

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  आओ मित्र आत्महत्या करें। क्यों चौंक रहे हो ? क्यों बुरा मान रहे हो? मेरी तरफ इतना आश्चर्य से मत देखो। अगर तुम्हें कुछ अनुचित लगा तो अपने शब्द वापस लिए लेता हूँ। किन्तु सोचिये मैं न कहूँ- तो भी आमंत्रित तो तुम हो ही और आत्महत्या तो तुम कर ही रहे हो। भेद मात्र शब्द और उसकी शैली का है, न कि क्रिया और उसके संपादन का। अपनी स्पष्टवादिता के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।  आपने मेरा आमंत्रण तो ठुकरा दिया, उन आमंत्रणों की उपस्थिति को कैसे नकारोगे जो तुम्हें उत्तेजित करते हैं कि एक झटके में अपने कमाए जीवन को गँवा दिया जाये, एक असफलता के कारण जीवन भर कमाई सैकड़ों सफलताओं को रद्दी मान लिया जाये, बचपन से संजोये सपनों को साकार न होने दिया जाये, अपने ही संरक्षकों को ठेंगा दिखाकर उनकी गढ़ी कमाई को धता बता दिया जाये। भाई मेरे- घोरतम निर्लज्जों की भाँति ये कौन है जो मनचाही प्रेमिका को पाने के लिए कुछ भी और किसी को भी खोने को तैयार है? फटे और निकम्मे जूते से भी कम मोह का परिचय देता हुआ ये कौन है जो अपने दोस्त से 2 पैसे कम की नौकरी मिलने पर खुद को शून्येतर बनाने की राह पर अग्रसर होने को है? आखिर ये कौन है जो अरब

हाथ में संकल्प वाली दूब लेकर |Dr. Madhurima Singh

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  हाथ में संकल्प वाली दूब लेकर भूल बैठी कामना के मंत्र सारे । मैं धरा की गंध भीगी भावना हूँ पूर्ण जो होती नहीं वह कामना हूँ ध्यान में उसके हुई हूँ लीन ऐसी स्वयं ही साधक, स्वयं ही साधना हूँ अर्घ्य सा अर्पित हुआ अस्तित्व मेरा पाप मेरे सब भुलाकर कौन तारे। फिर ऋचाओं के शगुन सुनने लगी हूँ सांस के फूलों में सुधि बुनने लगी हूँ दूर छिटकी लालिमा अंबर पटल पर झील पर बिखरी धुनें चुनने लगी हूँ धूप अटकी है शिखर पर मंदिरों के अब बढ़ाकर हाथ संध्या ही उतारे। प्राण से प्यारे ,अपरिचित हो गए सब कौन जाने प्रश्न का उत्तर मिले कब थिर अधर से नाम का मैं जाप करती आचमन के पान को तत्पर हुई जब अंजुरी का जल अचानक कांप जाए कौन ऐसे नाम से सहसा पुकारे। CLICK HERE FOR VIDEO:

सरसों

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  रूप का रतन लिए यौवन का धन लिए, कैसी बलखाती लहरा रही है सरसों  पुष्प के पराग अनुराग में नहाए हुए, मन मधुकर का रिझा रही है सरसों  पूर्वा पवन की छुअन से सिहर गयी, प्रेम के सगुन फगुना रही है सरसों  कामदेव रस ऋतुराज की महक से बहक बाँहों में समा रही है सरसों।  हल्दी के गांठ जैसी लगे गोरी गोरी, देह नेह में समायी सकुचा रही है सरसों  अंग अंग छाया है बनके अनंग रंग ,रंग रंग में नहा रही है सरसों  कोयल की कूक महुआ की मधु गंध आम मंजरी के संग फाग गा रही है सरसों  भोले महादेव को भी भाव में विभोर कर भंग के प्रभाव सी नचा रही है सरसों। --मनीष

यादों की दोपहरी चढ़ आयी द्वारे........

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गंध भरे महूबे मन छू गए सकारे यादों की दोपहरी चढ़ आयी द्वारे गूँज उठी सुधियों नूतन नमराइयाँ कूँक रहे कण्ठ आज दर्द की रुबाइयाँ डूब गए गागर में सागर रतनारे गंध भरे महूबे मन छू गए सकारे झूमती हवाओं ने गीत रचे सौरभ के किरणों ने तार कसे अनुपम सुर सरगम के ऐसे में पहचाना स्वर कोई पुकारे गंध भरे महूबे मन छू गए सकारे शिखर चढ़े यौवन की प्यास बहुत बढ़ गयी पूनम का कलश लिए चाँदनी उतर गयी प्राणों ने दर्द पिए लाज के सहारे गंध भरे महूबे मन छू गए सकारे गंध भरे महूबे मन छू गए सकारे यादों की दोपहरी चढ़ आयी द्वारे --मनीष

75th Independence Day, मातृभूमि को नमन है......

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आन बान शान और स्वाभिमान की मशाल क्रांति चेतना की अंगड़ाई को नमन है काल के कराल भाल जिससे तिलक किया उस पुण्य लहू की ललाई को नमन है झाँसी राजवंश की कमाई को नमन और अमर स्वरों की शहनाई को नमन है चिड़िया से बाज की लड़ाई को नमन रानी लक्ष्मीबाई शौर्य तरुणाई को नमन है जिनके लहू से लाल क्रांति वाला इतिहास जलियाँवाला बाग के शिकारों को नमन है शांति अहिंसा के हथियारों को नमन और क्रांति के गगन के सितारों को नमन है आजादी की डोली के कहारों को नमन और लालाजी के सीने के प्रहारों को नमन है तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूँगा दिल्ली चलो वाली ललकारों को नमन है हमको उजाला देने के लिए जो बुझे उन दीपकों की पावन कतारों को नमन है मातृ वंदना के गीत गाते गाते चूम लिए फाँसी वाले उन पुण्य हारों को को नमन है बलिदानी स्वरों की पुकारों को नमन और कोल्हुओं बही तेलधारों को नमन है क्रांतिकारिओं ने जहाँ लिखा वन्दे मातरम सेल्युलर जेल की दीवारों को नमन है मातृभूमि को दिलाने मुक्ति जो कमाया नाम बलिदानी शौर्य की सच्चाई को नमन है जिसने अमर क्रान्तिज्वाल को जन्म दिया ऐसी पुण्य कोख वाली माई को नमन है इंकलाब जिंदाबाद वा

बदरिया बरस गयी उस पार....

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हम सावन की बाट देखते डटे रहे इस पार बदरिया बरस गयी उस पार दादुर मयूरा पपीहा बोले भ्रमर सुमन पर डोले तक सतरंगी इंद्रधनुष को मन खाया हिचकोले बैरन हुई समीर, दिशा भटकी शीतल बौछार बदरिया बरस गयी उस पार पहली भेंट हुई पनघट पर मन के खुले किवाड़ तिल भर की बेजान तमन्ना पल में हुई पहाड़ दिल पर लगी तीर सी पैनी, वो पुरवैया ब्यार बदरिया बरस गयी उस पार रातों जागे दिन दिन भागे हम पीछे वो आगे भाग्यवान बस खुद समझा शेष अभागे लागे ऐसा जादू चला नेह का, बिखरा घर परिवार बदरिया क्यों बरसी इस पार हम सावन की बाट देखते डटे रहे इस पार बदरिया बरस गयी उस पार /

एक है कहानी

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एक आँख है हंसी तो एक आँख पानी तेरी मेरी जिंदगी की एक है कहानी जो धरा की है तपन वही गगन का पानी इस जमीं की आसमां की एक है कहानी। एक आग दीप में है एक चिता की अगन एक आग ज्योति है तो एक आग है जलन एक ही कथा है किन्तु अलग अलग मानी तेरे सुख की मेरे दुख की एक है कहानी। पी गए नदी समूची पर तृषा नहीं मिटी प्यास तो बुझी मगर ये कामना नहीं बुझी दौड़ती रही हिरण सी रेत पर जबानी तृप्ति या हो प्यास की हो एक है कहानी। दोपहर का सूर्य देख आँख चौंधिया गयी कुछ प्रकाश कम हुआ तो दृष्टि राह पा गयी रात और दिन का भेद जानते हैं ज्ञानी अन्धकार रोशनी की एक है कहानी। मुस्कुराहटों के मोल ऐसे भी दिए गए जब हँसा गुलाब रोम रोम शूल बिंध गए प्यार के प्रदेश में है गम की राजधानी हर सुमन की हर चुभन की एक है कहानी। मंदिरों में पूजते हैं मूरतें नयी नयी खुद को पढ़ सके न, पढ़ीं पोथियाँ कई कई फिर भी हम समझ न पाए ज्ञानियों/सूफियों की वाणी आदमी की देवता की एक है कहानी। जीना आया तब तलक तो जिंदगी फिसल गयी आइना वही रहा पर सूरतें बदल गयी फिर नवीन कोख ढूँढे आत्मा पुरानी मृत्यु और जिंदगी की एक है कहानी।

अब तो हो गया बंटाधार पड़ रही महँगाई की मार.....

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अब तो हो गया बंटाधार पड़ रही महँगाई की मार महँगाई की मार सबका भला करे करतार भिंडी भौहें तान रही है,आलू आँख तरेरे लौकी बैंगन तोरई कद्दू, मूली तक मुँह फेरे पालक को तो चढ़ा बुखार सबका भला करे करतार। लड्डू बर्फी वर्षों से थाली में थे ही किसके हलवा पूड़ी खीर कचौड़ी धीरे धीरे खिसके अब चटनी भी हुई फरार सबका भला करे करतार। बोरा भर नोटों के बदले चुटकी भर लो हींग गुड़ गायब थाली से जैसे गधे के सिर से सींग राई सौ रुपये की चार सबका भला करे करतार। रेट सुना जब शक्कर का तो पर्स को आया चक्कर दाल के दाने निकल पड़े चावल से लेने टक्कर चावल ने खींची तलवार सबका भला करे करतार। बढ़ा किराया देख दिसंबर भी लगता है जून नया कपल हनीमून मनाने निकला देहरादून लेकिन पहुँच गया हरिद्वार सबका भला करे करतार। नल्ले मानुस काम न धंधा बैठे खाली रूम पेट्रोल दारू दाम बराबर घूमो या लो झूम केवल जुमलों की सरकार सबका भला करे करतार।

जो इसकी तौहीन करेगा मिट्टी में मिल जायेगा | Kavita Tiwari | Veer Ras | Latest Kavi Sammelan | जब स्वदेश का बच्चा बच्चा वन्दे मातरम गायेगा

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( पूरी कविता सुनें  ) राष्ट्र भक्ति का दीप जलाना सबको अच्छा लगता है जन गण मन का गीत सुहाना सबको अच्छा लगता है जननी जन्मभूमि प्राणों से बढ़कर प्यारी होती है देशवासियों की खातिर सुरभित फुवारी होती है फिर प्रश्न खड़े होते हैं जगह जगह विस्फोटों से माँ तेरी संतानों को कैसी लाचारी होती है जब स्वदेश का बच्चा बच्चा वन्दे मातरम गायेगा कोई भी आतंकी कैसे उग्रवाद अपनाएगा अपना पूज्य तिरंगा नभ में फहर फहर फरायेगा जो इसकी तौहीन करेगा मिट्टी में मिल जायेगा। आओ करें प्रतिज्ञा हम सब गौरवशाली भाषा में क्यों जिन्दा हैं सिर्फ तिजोरी भरने की अभिलाषा में क्यों अपने मन में औरों की खातिर पीर नहीं होती एक सरीखी दुनिया में सबकी तकदीर नहीं होती अरे मौत के सौदागर ओ नीच अधम हत्यारे सुन मरने के जो संग चले ऐसी जागीर नहीं होती अगर निरीह प्राणियों पर भी दया नहीं दिखलायेगा धरती माता के दमन में गहरे दाग लगाएगा है इतिहास गवाह कसम से रोयेगा पछतायेगा जो इसकी तौहीन करेगा मिट्टी में मिल जायेगा। सुप्त मानसिकताएँ आओ मिलकर उन्हें जगाएँ हम देशप्रेम की अविरल धारा को मिलकर अपनाएँ हम खुरापात जिनके मन में है वो न

सबसे करबद्ध निवेदन है, "बोलो भारत माता की जय" | Kavita Tiwari | देशभक्ति कविता

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( पूरी कविता सुनें )  माँ धरती धरती है संयम सहती है खुद पर प्रबल भार कितने भी कोई जुल्म करे पर नही कभी मानती नहीं हार इस वसुंधरा पर अखिल विश्व जिसकी भौगोलिक भाषा है प्रत्येक खण्ड में सजे देश उन सब की यही अभिलाषा है हर एक देश को नाज़ रहा सच्चा है अथवा झूठा है कर्तव्यों और उपायों से निर्मित सम्मान अनूठा है निज आर्यवर्त की ओर ध्यान आकृष्ट कराने आई हूँ कुछ शब्द सुमन वाली कविता स्वागत में चुनकर लायी हूँ अपने अतीत का ज्ञान तत्व हम सबको यह बतलाता है नीतियाँ समर्पण वाली हों तो इतिहास अमर हो जाता है चाहे हो कलुषित भाव किन्तु दिखलादो अपना सरल हृदय सबसे करबद्ध निवेदन है,"बोलो भारत माता की जय"। छः ऋतुओं वाला श्रेष्ठ देश दुनिया का सबसे ज्येष्ठ देश अध्ययन करने पर पाओगे पूरी वसुधा पर है बिशेष सभ्यता जहाँ पर जिंदा है पूजे जाते हैं संस्कार कल कल करती पवित्र पावन नदियाँ ले धवल धार हिमवान किरीट बना जिसका उत्तर में प्रहरी के समान दक्षिण में सिंधु पखार चरण देता रहता है अभयदान पूरव में खाड़ी का गौरव सीमा को रक्षित करता है पश्चिम में अपना अरब सिंधु निज गुरुता का दम भरता है त्योहार अनूठे लगते ह

राहों में भी रिश्ते बन जाते हैं, ये रिश्ते भी मंजिल तक जाते हैं | Pramod Tiwari

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( पूरी कविता सुनें ) राहों में भी रिश्ते बन जाते हैं, ये रिश्ते भी मंजिल तक जाते हैं, आओ तुमको एक गीत सुनाते हैं, रिश्तों की खुशबू में नहलाते हैं। मेरे घर के आगे एक खिड़की थी, खिड़की से झाँका करती लड़की थी, इक रोज मैंने यूँ हीं टाफी खाई, फिर जीभ निकाली उसको दिखलाई, गुस्से में वो छज्जे पर आन खड़ी, आँखों ही आँखों मुझसे बहुत लड़ी, उसने भी फिर टाफी मँगवाई थी, आधी झूठी करके भिजवाई थी। वो झूठ टाफी अब भी मुँह में है, हो गई सुगर हम फिर भी खाते हैं। राहों में भी रिश्ते बन जाते हैं, ये रिश्ते भी मंजिल तक जाते हैं। दिल्ली की बस्ती मेरे बाजू में, इक गोरी-गोरी बिल्ली बैठी थी, बिल्ली के उड़ते रेशमी बालों से, मेरे दिल की चुहिया कुछ ऐंठी थी, चुहिया ने उस बिल्ली को काट लिया, बस फिर क्या था बिल्ली का ठाट हुआ, वो बिल्ली अब भी मेरे बाजू है, उसके बाजू में मेरा राजू है। अब बिल्ली,चुहिया,राजू सब मिलकर मुझको ही मेरा गीत सुनाते हैं। राहों में भी रिश्ते बन जाते हैं, ये रिश्ते भी मंजिल तक जाते हैं। एक दोस्त मेरा सीमा पर रहता था, चिट्ठी में जाने क्या-क्या कहता था, उर्दू आती थी नहीं मुझे लेकिन, उसक

ये है हिंदुस्तान हमारा प्यारा हिंदुस्तान | Anjum Rehbar | System

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जीना है दुश्वार यहाँ पर मरना है आसान ये है हिंदुस्तान हमारा प्यारा हिंदुस्तान। भाषाएँ भी हुई सियासी गुंडों का हथियार तुलसी,मीर,कबीर की कीमत दो पैसों में चार फुटपाथों पर भटक रहे हैं गालिब और रसखान ये है हिंदुस्तान हमारा प्यारा हिंदुस्तान। बहरे बैठे सुने दादरा गूंगे गीत सुनाएँ पागल सबकी करे पैरवी अंधे चित्र बनाएँ चोर उचक्के का होता है रोज़ यहाँ सम्मान ये है हिंदुस्तान हमारा प्यारा हिंदुस्तान। फूलों जैसे होठों पर भी ज़हर भरी नफ़रत है बिजली के खंभों पर पीली और हरी नफरत है लाल रंग में डूब गए हैं सब खादी के थान ये है हिंदुस्तान हमारा प्यारा हिंदुस्तान। सबसे ऊँचे लोग हैं वो जो कुर्सी के बन्दे हैं कैसा मंदिर कैसी नस्जिद सब इनके धंधे हैं ठोकर में ईमान है इनकी जेबों में भगवान ये है हिंदुस्तान हमारा प्यारा हिंदुस्तान। नोटों की पटरी पर चलती है वोटों की रेल बी ए पास मिलें चपरासी मंत्री चौथी फेल दीवारों पर यहाँ लिखा है समय बड़ा बलवान ये है हिंदुस्तान हमारा प्यारा हिंदुस्तान। पूरी कविता सुनें:

हम धरती पुत्र बिहारी हैं| Shambhu Shikhar| Bihar Gaurav Geet

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हम श्रमनायक हैं भारत के,और मेधा के अवतारी हैं। हम सौ पर भारी एक पड़ें,हम धरती पुत्र बिहारी हैं। वेदों के कितने बंध रचे,हमनें गायत्री छंद रचे साहित्य-सरित की धारा में,कितने ही काव्य प्रबंध रचे हम दिनकर-रेणु-बाणभट्ट,विद्यापति और भिखारी हैं हम धरती पुत्र बिहारी हैं,हम धरती पुत्र बिहारी हैं। सत्ता जब मद में चूर हुई,हम जयप्रकाश बनकर डोले 'सिंहासन खाली करो कि जनता आती है'दिनकर बोले हम सिखों के दशमेश गुरु,बिरसा मुंडा अवतारी हैं हम धरती पुत्र बिहारी हैं,हम धरती पुत्र बिहारी हैं। पहला-पहला गणतंत्र दिया,और अर्थशास्त्र का मंत्र दिया नालंदा से हमनें जग को,शिक्षा का पहला मंत्र दिया गिनती को शून्य दिया हमनें,गणनाएँ भी बलिहारी हैं हम धरती पुत्र बिहारी हैं,हम धरती पुत्र बिहारी हैं। मैथिली-अंगिका-भोजपूरी,हम लोकगूंज किलकारी हैं दुनिया पूजे धन की देवी,हम सरस्वती के पुजारी हैं जिसके आगे बौना पहाड़,दशरथ मांझी धुनधारी हैं हम धरती पुत्र बिहारी हैं,हम धरती पुत्र बिहारी हैं। शहनाई जिसपर नाज़ करे,बिस्मिल्लाह ख़ान हम ही तो हैं शारदा लोकशैली गायक,सुर की पहचान हम ही तो हैं दुनिया पूजे उगता सूरज,हम ढलत

मजदूर

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मजदूर गरीबी और खुद्दारी की एक स्पष्ट अभिव्यक्ति है  वो अभावों में रहने वाला सबसे ईमानदार व्यक्ति है  उन्हीं अभावों में कुछ लोग चोर लुटेरे जुआरी बन जाते हैं  कुछ खोकर अपनी खुद्दारी शर्म भिखारी बन जाते हैं  पेट की भूख अच्छे अच्छों का गुरूर तोड़ देती है  भूख ईमानदार के ईमान की धारा को मोड़ देती है  उतनी ही गरीबी के मारे कुछ लोग ओढ़कर खुद्दारी की चादर   बनके मजदूर 2 जून की रोटी कमाते हैं स्वेद बहाकर  जब संपन्न कहते हैं खुद को खुद्दार, वो उनकी सहूलियत है  मुफलिसी में ये गुण बना रहे तब मानो असलियत है  अभावों में ईमानदारी और खुद्दारी सबसे मुश्किल काम है  मजदूर इन विसंगतियों में सामंजस्य का दूसरा नाम है 

टूटी माला जैसे बिखरी किस्मत आज किसान की | सुदीप भोला | किसान | Farmer's suicide

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जो देता है खुशहाली,जिसके दम से हरियाली आज वही बर्बाद खड़ा है,देखो उसकी बदहाली। बहुत बुरी हालत है ईश्वर,धरती के भगवान की टूटी माला जैसे बिखरी किस्मत आज किसान की। ऐसी आंधी चली की घर का तिनका तिनका बिखर गया आखिर धरती माँ से उसका प्यारा बेटा बिछड़ गया अखबारो की रद्दी बनकर बिकी कथा बलिदान की टूटी माला जैसे बिखरी किस्मत आज किसान की। इतना सूद चुकाया उसने की अपनी सुध भूल गया सावन के मौसम में झूला लगा के फाँसी झूल गया अमुवा की डाली पर देखो लाश टंगी ईमान की टूटी माला जैसे बिखरी किस्मत आज किसान की। एक अरब पच्चीस करोड़ की भूख जो रोज मिटाता है कह पता नही वो किसी से जब भूखा सो जाता है फिर सीने पर गोली खाता सरकारी सम्मान की टूटी माला जैसे बिखरी किस्मत आज किसान की। किसी को काले धन की चिंता किसी को भ्रष्टाचार की मगर लड़ाई कौन लड़ेगा फसलों के हक़दार की सरे आम बाजार में इज्जत लुट जाती खलिहान की टूटी माला जैसे बिखरी किस्मत आज किसान की। जो अपने कांधे पर देखो खुद हल लेकर चलता है आज उसी की कठनाई का हल क्यों नही निकलता है है जिससे उम्मीद उन्हें बस चिंता है मतदान की टूटी माला जैसे बिखरी किस्मत आज किसान की।

मैं अच्छा इंसान नहीं हूँ , सच मानो

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मैं अच्छा इंसान नहीं हूँ , सच मानो। जितना प्यार मिला है जग से, उतना जग को, दिया नहीं है। इस दुनिया की खातिर मैंने,  सच में कुछ भी किया नहीं है ।  जितने ज्यादा पाप किए हैं, उतना पुण्य कमा ना पाया।  जितने कागज़ लिख लिख फाड़े,  उतने पेड़ लगा ना पाया।  शिक्षा हूँ बस, ज्ञान नहीं हूँ, सच मानो।  था परमार्थ दिखावा केवल,  भीतर, स्वार्थ अगाध छुपा था।  जब पंछी को चुग्गा डाला,  तब अंतस में व्याध छुपा था।  कोई चाह अधूरी होगी,  जिसने फिर जन्माया मुझको।  कोई कर्ज बकाया होगा,  जो दुनिया में लाया मुझको ।  शाप हूँ मैं, वरदान नहीं हूँ, सच मानो।  मैं अच्छा इंसान नहीं हूँ , सच मानो।

जाने कब छल जाये उमरिया क्षण दो क्षण को प्यार करो....

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  कैसा बैर कहाँ के बैरी आपस में मत खार करो जाने कब छल जाये उमरिया क्षण दो क्षण को प्यार करो। कितना अच्छा था बेचारा कल सीढ़ी से फिसल गया वो भी अच्छा था कल जिसको भरा हुआ ट्रक कुचल गया जीवन का एक लम्हा देखो उम्र समूची निगल गया  अच्छे अच्छे दमदारों का चुटकी में दम निकल गया  क्षण भंगुर ये उजियारा है किरणों का सत्कार करो  जाने कब छल जाये उमरिया क्षण दो क्षण को प्यार करो।  चाहे मन को समझाओ पर समझाने से क्या होगा  उस पर यह भी सच है आँसू ढुलकने से क्या होगा  पहले ही  सोचा होता अब पछताने से क्या होगा  वो तो चला गया अब उसके गुण  गाने से क्या होगा  मत लाशों पर फूल चढ़ाओ जीते जी श्रृंगार करो  जाने कब छल जाये उमरिया क्षण दो क्षण को प्यार करो।  किसने अपने अंतर्मन को सच्चे मन से तौला है  उसने नहीं मगर क्या तुमने अपना ह्रदय टटोला है  संबंधों का ठोस धरातल क्यों अंदर से पोला है  दिल से दिल की क्यों अनबन है घर घर आज अबोला है  हर गूँगे पल के अंतस में गुंजन का संचार करो  जाने कब छल जाये उमरिया क्षण दो क्षण को प्यार करो। 

चल गुबार को निकाल

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मौन दुःख के संग क्यों  उड़ा उड़ा ये रंग क्यों  मिटी मिटी उमंग क्यों  बुझी बुझी तरंग क्यों  तामस के खार को निकाल  चल गुबार को निकाल  चल गुबार को निकाल। ढह गया सो बह गया  सह गया वो रह गया  मिल गया सो कह गया  वही दिखा जो हो गया  नए विचार को निकाल  चल गुबार को निकाल चल गुबार को निकाल। जी रही मरी मरी  बानी है जो डरी डरी  सुना उसे खरी खरी  वही है जो हरी भरी  उसी बहार को निकाल  चल गुबार को निकाल चल गुबार को निकाल। धड़क धड़क ये वक्ष है  कि प्रश्न प्रश्न यक्ष है  ये एक अंध कक्ष है  शत्रु भी समक्ष है  अब तो कटार को निकाल  चल गुबार को निकाल चल गुबार को निकाल मद भरा प्रमाद है  तो विष भरा विषाद है  वही सृजन का वाद है  स्वयं का जो निनाद है  पथिक पुकार को निकाल  चल गुबार को निकाल चल गुबार को निकाल।

तन्हाई में जब जब तेरी यादों से मिला हूँ, महसूस हुआ है कि तुझे देख रहा हूँ...

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तन्हाई में जब जब तेरी यादों से मिला हूँ  महसूस हुआ है कि तुझे देख रहा हूँ।  ऐसा भी नहीं है कि तुझे याद करूँ मैं  आदत है मेरी गम से जरा खेल रहा हूँ।  हालाँकि दहकते हुए शोलों पे खड़ा हूँ  क्यों ख़ाक अभी तक न हुआ सोच रहा हूँ।  हिम्मत है तो कर दे मुझे तूफाँ के हवाले  मौजों से कहो आज मैं साहिल पे खड़ा हूँ।  वो लोग अभी जश्न बनाने में हैं मशरूफ  मैं जिनको बचाने के लिए क़त्ल हुआ हूँ।  तलवार पे खुद मैंने ही  सर रख दिया अपना  मालूम है मुझको कि मैं सच बोल रहा हूँ।  इस भीड़ में अपना नज़र आये कोई मुझको  मैं गुमशुदा बच्चे की तरह खौफजदा हूँ।  शायद ये तकब्बुर की सजा मुझको मिली है  उभरा था बड़ी शान से अब डूब रहा हूँ। 

मैं महान, मैं शक्तिमान, मैं कर्म से प्रचाकर हूँ

 कोरोना से हाहाकार है  ऑक्सीजन की चीख पुकार है  एजेंसियों के सामने लम्बी कतार है  शमशान में लाशों की भरमार है।  वो कहते हैं  खबरदार जो हम पर जो उंगली उठाई  अरे! दे तो रहे हैं अस्पताल और दवाई  अब क्या करें जो मर गया तुम्हारा भाई।  कोरोना से जान चली गयी तो क्या  बनने पहले मिट गयी पहचान तो क्या  अरे!भैया तेरी लाश को तो मुक्ति मिल जाएगी  अगर सरकार चली गयी तो फिरसे कैसे आएगी।  इसलिए हमको सबसे शक्तिशाली राजा बताओ  कोरोना हमसे भय खाता है, ऐसे मंगलगीत गाओ  कोरोना आज नहीं तो कल मारा जायेगा  पत्रकार बाबू तुमको यहीं रहना है,  समझ लेना बाद में सुधारा जायेगा।  जो भी हमारे खिलाफ लिखता है  हमको सब कुछ दिखता है  ट्विटर पर दवाई माँगते हो  क्यूँ रोज नया मुद्दा लाते हो।  छोड़ो हम खुद का इतिहास बनाएंगे  उसमें शक्तिशाली राजा कहलायेंगे  हम तुम्हारा लिखा मिटा देंगे  ऑक्सीजन वाले गद्दारों को ही हटा देंगे।  मैं महान, मैं शक्तिमान  इस देश का मैं ही विधान  बोलगे सच तो फेक बता देंगे  सारे भक्तगण तुम्हारे पीछे लगा देंगे वो खूब गलियाऐंगे  हर हाल में मेरी इज्जत बचाएंगे  तुमको फिर मेरी जय कहना पड़ेगा  हाथ जोड़कर घंटालों

किस जुल्म की है ये सजा?

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सब लाचार हो गए यहाँ   ये हालात हमको  मौन हैं संवेदनाएँ  बेबस खड़ी इंसानियत साँसें रूकती जा रही हैं  नैतिकताएँ मरती जा रही हैं  बेबसी ऐसी कि  अब ले जायेंगे कहाँ  जलती चिताएँ देखकर मन  मन ही मन में रो रहा  आँसुओं का सैलाब बहता जा रहा  ख़ौफ़ में ये जिंदगी इंसान घबरा रहा  भगवान अपने बन्दों से क्यों है खफा  आखिर किस जुल्म की है ये सजा  अब तो तू इन्साफ कर  अपने बच्चों को आबाद कर  हाथ जोड़कर प्रार्थनाएँ  अब तो हों बस कृपाएँ 

Bhagat Singh, Sukhdev, Rajguru Shaheedi Diwas

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घोड़ी चढ़ने की ललक मन में रही नहीं फांसी चढ़ने का ख्वाब लिए बलिदानी था लावा बन बहता था श्रोणित शिराओं में जो वीर अभिमानी पंचनद वाला पानी था दस गुरुओं की शक्ति भक्ति भावना का ज्वार फिरंगी को ललकार वीर स्वाभिमानी था आतताइयों ने भले फांसी पे चढ़ा दिया किन्तु अमर मशाल बना क्रांति का सैनानी था। मातृभूमि को दिलाने मुक्ति जो कमाया नाम बलिदानी शौर्य की सच्चाई को नमन है जिसने अमर क्रांतिज्वाल को जन्म दिया ऐसी पुण्य कोख वाली मायी को नमन है इन्कलाब ज़िंदाबाद वाले घोष को नमन और आजादी के युद्ध के कन्हाई को नमन है वरमाल की बजाय फंदे को गले में डाला भगत की क्रांति तरुणाई को नमन है।  

महाशिवरात्रि

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  सृष्टि का उदय भी तू है सृष्टि का विलय भी तू है  तू ही तम है, तू प्रकाश,तू विनाश , तू विकास  सृष्टि के विनाश में तू ही तो एक आस है  है अस्त्र तू , शस्त्र तू , तू ही तो चन्द्रहास है  गंग तेरे अंग का अभन्न एक रंग है  पड़े गले भुजंग और बज रहे मृदंग है  आदि से अनादि तक समाधी भी लगी रहे  लपट लपट के ज्वलन वो जोत भी जली रहे  टनन टनन सी घंटियाँ घनन घनन मृदंग है  विकराल काल छाल पे वो चक्षु लाल रंग है  क्रोध भी प्रचंड तो ये तेज भी अखंड है  पाँव के तले जो रौंधे विश्व का घमंड है  चमक चमक है चन्द्रमा प्रभो तुम्हारे शीश पर  तुम्हारी सी चमक रहे प्रभो हमारे शीश पर 

Valentine's Day Shayari

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  दो कदम और जायेंगे संग में रहो तो सही वेवजह भी मुस्कुरायेंगे तुम कहो तो सही दो धड़कते हुए दिल एक दूजे के लिए एक ही हो जायेंगे तुम कहो तो सही। सुना है बड़े तेरे चाहने वाले हैं पर कहाँ हम भी मानने वाले हैं यूँ न गुज़रा कर मेरे दिल के गलियारों से वहाँ और भी मेरे जानने वाले हैं। ए हवा ज़रा आहिस्ता आहिस्ता तो चल वो तनिक देर में मेरी सासों को पहचानने वाले हैं। वो ज़ुल्फ़ें माथे पर हाँ तेरी जो हैं मत पूछ तू हाल मेरा कितना तड़पती हैं जो छुप छुप कर देखती हैं ज़ालिम नज़रें तेरी वो जानती हैं मर जाऊँगा फिर भी मुस्कुराती है। कभी लगा के वो कजरा कभी लगा के वो लाली यूँ लेती है वो बदला जब खुद को सजाती है। इश्क़ पर मुकदमा यूँ जायज़ नहीं ख़ताएँ दोनों की हैं एक की शायद नहीं आ मिल बैठकर सुलह कर लें दिल के मुकदमों के लिए कोई अदालत नहीं।

अंधियारा है बहुत यहाँ अब तुम दह लो या मैं दह लूँ , प्रमोद तिवारी

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अंधियारा है बहुत यहाँ अब तुम दह लो या मैं दह लूँ एक कहानी उजियारे की तुम कह दो या मैं कह दूं।। जिन लहरों पे हम तिरते थे वे दरिया में डूब गईं डूबी लहरो में चाहे तुम बहलो या मैं बह लूँ ।। जख्म भले ही अलग अलग हो लेकिन दर्द बराबर है कोई फर्क नही पड़ता है तुम सह लो या मैं सह लूँ ।। आँखों की दहलीज पे आके सपना बोला आँसू से  घर तो आख़िर घर होता है तुम रह लो या मैं राह लूँ।। अंधियारा है बहुत यहाँ अब तुम दहलो या मैं दह लूँ  एक कहानी उजियारे की तुम कह दो या मैं कह दूं।।

72th Republic Day

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जिनकी कुर्बत माँ भारती के श्रृंगारों से कम नहीं  याद उन वीरों की खुदा की वंदगी से कम नहीं  जंग में जो दुश्मनों को मारकर हासिल हुई  वो शहादत भी यक़ीनन जिंदगी से कम नहीं   बर्फ का ओढ़े कफ़न जो चढ़ रहे हैं चोटियाँ  उनकी ये हिम्मत किसी दीवानगी से काम नहीं  अपने बेटों को जो हँस कर भेज देती जंग में  ऐसी माई पन्ना और दुर्गावती से काम नहीं  जान देकर जो बचाते हैं वतन की आबरू  उनकी विधवानी किसी देवी सती नहीं है पढ़ा इतिहास अपना और पढ़ा भूगोल भी  फिर भी हमसे जंग लड़ना खुदखुशी से कम नहीं  केवल एटम तक नहीं अपने इरादे जान लो   दुनिया वालों देख लेना हम किसी से कम नहीं  

मानुष इस कलयुग में कब तक मुझको साफ़ करेंगे

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अरे भैया ओ  माता मुझको तो अब माफ़ करो  मेरी गंदगी मुझपे छोड़ो कुछ अपनी भी साफ करो  मानुष इस कलयुग में कब तक मुझको साफ़ करेंगे  राजनीति में मैं ही शेष हूँ अब सब मेरा जाप करेंगे  हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई झगड़ों में जान नहीं है  जात पात के कौम कबीलों में उनका का मान नहीं है  मैं ही बची हूँ वोटबैंक मेरा ही सब प्रलाप करेंगे  मानुष इस कलयुग में कब तक मुझको साफ़ करेंगे भवसागर तारणी मैं गंगा इन सब को तार रही हूँ   गंगा जमना तहज़ीबों की भारत में तू रसधार रही हूँ   मेरे जल में बहने वाला कल भी नेता बन जाता है  मेरी  साफ़ सफाई करने वाला नेता ही मुझको खाता है  आडम्बर में नेता नित अपने क्रिया और कलाप करेंगे  मानुष इस कलयुग में कब तक मुझको साफ़ करेंगे मेरी छाती में नौकाओं के दल क्रीड़ा खेल रहे हैं  गंगा तट पर सभी तामसी मांस मदिरा पेल रहे हैं  नाना आखेटों से धाराएँ घिरी दिखाई पड़ी हैं  गंगाजल बेचनेवालों से चिरी दिखाई पड़ी है  ये सारे मेरी महिमा धीरे-धीरे हाफ करेंगे  मानुष इस कलयुग में कब तक मुझको साफ़ करेंगे मेरे नाम से संस्थाएँ घाटों पे चंदा काट रही हैं  साधू माई और पंडों की पीढ़ी धंधा पाट रही हैं  पत्र फूल धूली ह

सूनेपन से लड़ते हैं अब अधरों के गीत

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सूनेपन से लड़ते हैं अब अधरों के गीत  चारदीवारी भीतर कैद विहग लगता है  पर उड़ने को आतुर तपी सजग जगता है  दूर बहुत ही बसते अब शहरों के मीत  सूनेपन से लड़ते हैं अब अधरों के गीत जाल बुने जो मकड़ी और उसी में उलझे  कैसे ? क्यों कर? कितने? प्रश्न रहे अनसुलझे  सात सुरों की देखी ये बहरों से प्रीत  सूनेपन से लड़ते हैं अब अधरों के गीत अंतिम सच जीवन का सब अपनों से हारे  प्राण पराये दुखते ह्रदय हुआ है भारी  सत्य टंगे सूली पर ठगरों के सिर जीत  सूनेपन से लड़ते हैं अब अधरों के गीत सूनेपन से लड़ते हैं अब अधरों के गीत 

नम से जज्बात कुछ मचलते हैं ....

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नम से जज्बात कुछ मचलते हैं  जब तेरी याद में तड़पते हैं  दिल लगाने की भूल कर बैठे  हिज्र की आग में सुलगते हैं  क्या भला अब करें यकीं वो तो  मौसमों की तरह बदलते हैं  जो दिए थे गुलाब उल्फत में  बनके काँटे हजार चुभते हैं  थक गए सब चराग जल जल के रात भर हम वहीं सुलगते हैं   टूट कर शाख से गिरे अब जो  आज कल हम कहाँ महकते हैं  बेखुदी में नहीं खबर कुछ भी  गर्द शोरों में भी ढलते हैं  नम से जज्बात कुछ मचलते हैं  जब तेरी याद में तड़पते हैं 

बात...

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तेरे मेरे लव की बात  कैसे बन गयी सब की बात।  मैंने चाहा तब की बात  वरना तुमने कब की बात।  याद उसे, बस आज का दिन है  भूल गए वो तब की बात।  छीन के मुझसे सारी दुनिया  पूछे वो, ये कब की बात।  फिर पंचायत बैठ गयी है  होगी फिर से 'मन की बात'। अपनापन भी खो बैठोगे  छोड़ो अब मज़हब की बात।   तेरे मेरे लव की बात  कैसे बन गयी सब की बात।

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छुक छुक छुक छुक रेल चली है जीवन की || chhuk chhuk rail chali hai jeevan ki