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नदी बोली समन्दर से | Kunwar Bechain

नदी बोली समन्दर से, मैं तेरे पास आई हूँ। मुझे भी गा मेरे शायर, मैं तेरी ही रुबाई हूँ।। मुझे ऊँचाइयों का वो अकेलापन नहीं भाया लहर होते हुये भी तो मेरा मन न लहराया मुझे बाँधे रही ठंडे बरफ की रेशमी काया। बड़ी मुश्किल से बन निर्झर, उतर पाई मैं धरती पर छुपा कर रख मुझे सागर, पसीने की कमाई हूँ।। मुझे पत्थर कभी घाटियों के प्यार ने रोका कभी कलियों कभी फूलों भरे त्यौहार ने रोका मुझे कर्तव्य से ज़्यादा किसी अधिकार ने रोका। मगर मैं रुक नहीं पाई, मैं तेरे घर चली आई मैं धड़कन हूँ मैं अँगड़ाई, तेरे दिल में समाई हूँ।। पहन कर चाँद की नथनी, सितारों से भरा आँचल नये जल की नई बूँदें, नये घुँघरू नई पायल नया झूमर नई टिकुली, नई बिंदिया नया काजल। पहन आई मैं हर गहना, कि तेरे साथ ही रहना लहर की चूड़ियाँ पहना, मैं पानी की कलाई हूँ। --कुँवर बेचैन  

मैं महान, मैं शक्तिमान, मैं कर्म से प्रचाकर हूँ

 कोरोना से हाहाकार है  ऑक्सीजन की चीख पुकार है  एजेंसियों के सामने लम्बी कतार है  शमशान में लाशों की भरमार है।  वो कहते हैं  खबरदार जो हम पर जो उंगली उठाई  अरे! दे तो रहे हैं अस्पताल और दवाई  अब क्या करें जो मर गया तुम्हारा भाई।  कोरोना से जान चली गयी तो क्या  बनने पहले मिट गयी पहचान तो क्या  अरे!भैया तेरी लाश को तो मुक्ति मिल जाएगी  अगर सरकार चली गयी तो फिरसे कैसे आएगी।  इसलिए हमको सबसे शक्तिशाली राजा बताओ  कोरोना हमसे भय खाता है, ऐसे मंगलगीत गाओ  कोरोना आज नहीं तो कल मारा जायेगा  पत्रकार बाबू तुमको यहीं रहना है,  समझ लेना बाद में सुधारा जायेगा।  जो भी हमारे खिलाफ लिखता है  हमको सब कुछ दिखता है  ट्विटर पर दवाई माँगते हो  क्यूँ रोज नया मुद्दा लाते हो।  छोड़ो हम खुद का इतिहास बनाएंगे  उसमें शक्तिशाली राजा कहलायेंगे  हम तुम्हारा लिखा मिटा देंगे  ऑक्सीजन वाले गद्दारों को ही हटा देंगे।  मैं महान, मैं शक्तिमान  इस देश का मैं ही विधान  बोलगे सच तो फेक बता देंगे  सारे भक्तगण तुम्हारे पीछे लगा देंगे वो खूब गलियाऐंगे  हर हाल में मेरी इज्जत बचाएंगे  तुमको फिर मेरी जय कहना पड़ेगा  हाथ जोड़कर घंटालों

किस जुल्म की है ये सजा?

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सब लाचार हो गए यहाँ   ये हालात हमको  मौन हैं संवेदनाएँ  बेबस खड़ी इंसानियत साँसें रूकती जा रही हैं  नैतिकताएँ मरती जा रही हैं  बेबसी ऐसी कि  अब ले जायेंगे कहाँ  जलती चिताएँ देखकर मन  मन ही मन में रो रहा  आँसुओं का सैलाब बहता जा रहा  ख़ौफ़ में ये जिंदगी इंसान घबरा रहा  भगवान अपने बन्दों से क्यों है खफा  आखिर किस जुल्म की है ये सजा  अब तो तू इन्साफ कर  अपने बच्चों को आबाद कर  हाथ जोड़कर प्रार्थनाएँ  अब तो हों बस कृपाएँ 

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