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Showing posts from August, 2020

नदी बोली समन्दर से | Kunwar Bechain

नदी बोली समन्दर से, मैं तेरे पास आई हूँ। मुझे भी गा मेरे शायर, मैं तेरी ही रुबाई हूँ।। मुझे ऊँचाइयों का वो अकेलापन नहीं भाया लहर होते हुये भी तो मेरा मन न लहराया मुझे बाँधे रही ठंडे बरफ की रेशमी काया। बड़ी मुश्किल से बन निर्झर, उतर पाई मैं धरती पर छुपा कर रख मुझे सागर, पसीने की कमाई हूँ।। मुझे पत्थर कभी घाटियों के प्यार ने रोका कभी कलियों कभी फूलों भरे त्यौहार ने रोका मुझे कर्तव्य से ज़्यादा किसी अधिकार ने रोका। मगर मैं रुक नहीं पाई, मैं तेरे घर चली आई मैं धड़कन हूँ मैं अँगड़ाई, तेरे दिल में समाई हूँ।। पहन कर चाँद की नथनी, सितारों से भरा आँचल नये जल की नई बूँदें, नये घुँघरू नई पायल नया झूमर नई टिकुली, नई बिंदिया नया काजल। पहन आई मैं हर गहना, कि तेरे साथ ही रहना लहर की चूड़ियाँ पहना, मैं पानी की कलाई हूँ। --कुँवर बेचैन  

ये दर्द बदनाम तो न होगा........

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  मुझे बता दे ए दोस्त मेरे ये दर्द बदनाम तो न होगा तबीब मेरे कहीं तुम्हारी दवा से आराम तो न होगा। कभी तो आओगे तुम यहाँ पर जहाँ मैं खोया हुआ मिलूँगा सिवाय ख्वाबों के न हो कुछ भी ये मेरा अंजाम तो न होगा। कभी तमन्नाएँ तुम न रखना वही मिलेगा जहाँ था छोड़ा  हर एक परसों की कहने वाला अब ख्याल-ए-वहम तो न होगा।  ग़ज़ल तुम्हारे लिए लिखी थी मगर तुम्हीं ने कभी पढ़ी न  उसी ग़ज़ल की किताब जैसा मेरा भी पैगाम तो न होगा।  गिला नहीं कोई जिंदगी से जो वक़्त गुज़रा किसी तरह से  सभी को माफ़ी दी उसके गम में ये तेज गुमनाम तो न होगा।  मुझे बता दे ए दोस्त मेरे ये दर्द बदनाम तो न होगा  तबीब मेरे कहीं तुम्हारी दवा से आराम तो न होगा।                                                                                                          --मनीष महावर 

74 Independence Day

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  हम सौंप कर तुमको धरोहर जा रहे खोना नहीं हम देश पर मरकर अमरता पा रहे रोना नहीं। वह बीज जो विष वृक्ष बनकर इस धरा पर छा गया जो मातृभूमि पर गुलामी वाला दाग लगा गया फिर से कभी जयचंद बनकर तुम उसे बोना नहीं हम देश पर मरकर अमरता पा  रहे रोना नहीं।  बिस्मिल सुभाष भगत यहीं सुखदेव और आजाद हैं  बलिदान की इस भूमि पर हर वीर जिंदाबाद है  मजबूर या लाचार अब तुमको कभी  होना नहीं हम देश पर मरकर अमरता पा  रहे रोना नहीं।  जब स्वार्थ की जागीर पे सारा जहाँ कंगाल हो  गम के अंधेरों में सना हर आदमी बदहाल हो  तब गफलतों की नींद में उस वक़्त तुम सोना नहीं   हम देश पर मरकर अमरता पा  रहे रोना नहीं।  तुम वीर बालक वीर माता की अटल संतान हो  तुम पूर्वजों के स्वप्न माँ की गोद के अभिमान हो  कभी बुजदिली का बोझ अपने शीश पर ढोना नहीं   हम देश पर मरकर अमरता पा  रहे रोना नहीं। 

Krishna Janmashtami

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नटखट जब तू निहारता है गगरी में, चन्द्रमा भी झट घट बीच बैठ जाता है तेरी दृष्टि उठती है झाँकने को नभ में तो, घट से निकल शशि शून्य में समाता है मैया बोली अपना कलंक मिटने को, तुझे चूमने को चोरी से मयंक ललचाता है इसीलिए तेरे मुख चंद्र का चकोर बन, चोर चंद्र चारों चक्कर लगाता है श्याम सखा की, मोर पखा की, गौर छटा श्रृंगार है राधा  वृन्दावन में व्याकुल ब्रजराज की, वंशी की टेर पुकार है राधा  पर्याय बनी जप की तप की, नहीं किंचित काम विकार है राधा  मुक्ति को द्वार है, भक्ति की धार है, प्यार है प्यार है प्यार है राधा 

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