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Showing posts from February, 2020

नदी बोली समन्दर से | Kunwar Bechain

नदी बोली समन्दर से, मैं तेरे पास आई हूँ। मुझे भी गा मेरे शायर, मैं तेरी ही रुबाई हूँ।। मुझे ऊँचाइयों का वो अकेलापन नहीं भाया लहर होते हुये भी तो मेरा मन न लहराया मुझे बाँधे रही ठंडे बरफ की रेशमी काया। बड़ी मुश्किल से बन निर्झर, उतर पाई मैं धरती पर छुपा कर रख मुझे सागर, पसीने की कमाई हूँ।। मुझे पत्थर कभी घाटियों के प्यार ने रोका कभी कलियों कभी फूलों भरे त्यौहार ने रोका मुझे कर्तव्य से ज़्यादा किसी अधिकार ने रोका। मगर मैं रुक नहीं पाई, मैं तेरे घर चली आई मैं धड़कन हूँ मैं अँगड़ाई, तेरे दिल में समाई हूँ।। पहन कर चाँद की नथनी, सितारों से भरा आँचल नये जल की नई बूँदें, नये घुँघरू नई पायल नया झूमर नई टिकुली, नई बिंदिया नया काजल। पहन आई मैं हर गहना, कि तेरे साथ ही रहना लहर की चूड़ियाँ पहना, मैं पानी की कलाई हूँ। --कुँवर बेचैन  

अब गुल नहीं, गुलशन नहीं.......

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अब गुल नहीं , गुलशन नहीं , न तिरछी नज़र मे वह धार है न वो खत रहे , न कासिद कोई , न ही जिगर मे वह प्यार है , न ही लेखनी मे वह दम रहा , न तो पाठकों मे समझ रही अब प्यार जिस्म मे फँस गया , न तो दिल , न ही दिलदार है। अब टाइप होते हर्फ हैं , ईमोजी करते बात हैं फारवर्ड होती शायरी , बासी सभी जज़्बात हैं बंधन किसी का , " थ्रू " किसी के , आशिकों मे बँट रहा गहराई कैसे आयेगी , जब आशिक के ये हालात हैं ? ओढ़ कर पच्छिम की संस्कृति , भूलिये रुसवाइयां अब न वह यादें रहीं हैं , और न वह तनहाइयाँ , आशिक बदलते जा रहे , माशूका भी कम नही ऐसे छिछले पानी मे , मत ढूँढिये गहराइयाँ ।

वो बचपन फिर से ला दो माँ

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बहुत बोझ है कन्धों पर और चिंताओं ने घेरा है न है निश्चित ठौर ठिकाना अस्थिर मेरा बसेरा है दो छैया फिर से पल्लू की लोरी मुझे सुना दो माँ कितना मनोरम बीता था वो बचपन फिर से ला दो माँ। भोर तेरी मीठी बोली सुनकर दिन शुभ होता था रात तेरी मीठी लोरी सुन बिस्तर पर सोता था अब तो शोर घडी का सुनकर उठना ही मजबूरी है रात रात भर जाग जागकर पढ़ना मात जरूरी है। थका हुआ हूँ काम बहुत है आकर सिर सहला दो माँ कितना मनोरम बीता था वो बचपन फिर से ला दो माँ। लट्टू के चक्कर खोये हैं गिल्ली डंडा छूट गया कंचे फूट गए हैं सारे बल्ला मेरा टूट गया कंप्यूटर पर काम हूँ करता देह मेरी दुःख जाती है बैठे बैठे दिन भर अम्मा याद तेरी आ जाती है।  प्रतिपल एक परीक्षा देनी आकर दही चटा दो माँ कितना मनोरम बीता था वो बचपन फिर से ला दो माँ। 

प्यार क्या है ?

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प्रेम से ही धरा प्रेम से ही गगन प्रेम से ही तो जीवन का आधार है लव ये चुप ही रहे आँखें सब कुछ कहें तब समझना प्रिय हाँ यही प्यार है। उसकी बिंदिया चमकता सितारा लगे दुनिया मझधार और वो किनारा लगे वो हँसे चाँद की चाँदनी की तरह उसके बिन न कहीं दिल तुम्हारा लगे बिंदिया झुमके और कंगन भी फीके लगें जब लगे सादगी उसका श्रृंगार है। लव ये चुप ही रहे आँखें सब कुछ कहें तब समझना प्रिय हाँ यही प्यार है। राज़ की सारी बातें बताये  तुम्हें हर दुआ में वही याद आये तुम्हें हर उदासी वो पहचान ले बिन कहे कर के नादानियाँ फिर हँसाये तुम्हें उसकी यादों में खुद को भुलाने लगो और लगे उस पे मेरा ही अधिकार है। लव ये चुप ही रहे आँखें सब कुछ कहें तब समझना प्रिय हाँ यही प्यार है। इन लवों पर सदा मुस्कराहट रहे उसके सपनों की पलकों पे आहट रहे भावना के क्षितिज पे हो मन का मिलन सिर्फ तन के मिलान की न चाहत रहे तुम जो कान्हा बनो राधिका वो लगे बज उठे मन में वीणा की झंकार है। लव ये चुप ही रहे आँखें सब कुछ कहें तब समझना प्रिय हाँ यही प्यार है।

इश्क़

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दो कदम और जायेंगे संग में रहो तो सही वेवजह भी मुस्कुरायेंगे तुम कहो तो सही दो धड़कते हुए दिल एक दूजे के लिए एक ही हो जायेंगे तुम कहो तो सही। सुना है बड़े तेरे चाहने वाले हैं पर कहाँ हम भी मानने वाले हैं यूँ न गुज़रा कर मेरे दिल के गलियारों से वहाँ और भी मेरे जानने वाले हैं। ए हवा ज़रा आहिस्ता आहिस्ता तो चल वो तनिक देर में मेरी सासों को पहचानने वाले हैं। वो ज़ुल्फ़ें माथे पर हाँ तेरी जो हैं मत पूछ तू हाल मेरा कितना तड़पती हैं जो छुप छुप कर देखती हैं ज़ालिम नज़रें तेरी वो जानती हैं मर जाऊँगा फिर भी मुस्कुराती है। कभी लगा के वो कजरा कभी लगा के वो लाली यूँ लेती है वो बदला जब खुद को सजाती है। इश्क़ पर मुकदमा यूँ जायज़ नहीं ख़ताएँ दोनों की हैं एक की शायद नहीं आ मिल बैठकर सुलह कर लें दिल के मुकदमों के लिए कोई अदालत नहीं। 

बदलता जहान

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सारे शहर का देखिये मंज़र बदल गया आँसू को मेरे देख समंदर बदल गया। बदली नहीं ज़मींन और न आसमान बदला  यादों का सिर्फ तेरी कलेंडर बदल गया। जुगनू ने मुझको पता एक चाँद का दिया अब ये खबर मिली कि उसका घर बदल गया। औरों की तरह उसने भी कुछ जख्म दे दिए  दिल था मेरा वही पर खंजर बदल गया। अब शायरी के नाम पे चलते हैं चुटकुले कैसा अजीब दौर है शायर बदल गया।

भगत सिंह

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घोड़ी चढ़ने की ललक मन में रही नहीं फांसी चढ़ने का ख्वाब लिए बलिदानी था लावा बन बहता था श्रोणित शिराओं में जो वीर अभिमानी पंचनद वाला पानी था दस गुरुओं की शक्ति भक्ति भावना का ज्वार फिरंगी को ललकार वीर स्वाभिमानी था आतताइयों ने भले फांसी पे चढ़ा दिया किन्तु अमर मशाल बना क्रांति का सैनानी था। मातृभूमि को दिलाने मुक्ति जो कमाया नाम बलिदानी शौर्य की सच्चाई को नमन है जिसने अमर क्रांतिज्वाल को जन्म दिया ऐसी पुण्य कोख वाली मायी को नमन है इन्कलाब ज़िंदाबाद वाले घोष को नमन और आजादी के युद्ध के कन्हाई को नमन है वरमाल की बजाय फंदे को गले में डाला भगत की क्रांति तरुणाई को नमन है। जिनके लहू से लाल क्रांति लाल इतिहास जलियाँवाला बाग के शिकारों को नमन है शांति अहिंसा के हथियारों को नमन और क्रांति के गगन के सितारों को नमन है आज़ादी की डोली के कहारों को नमन और लाला जी के सीने के प्रहारों को नमन है तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आजादी दूँगा दिल्ली चलो वाली ललकारों को नमन है। हमको उजाला देने के लिए जो बुझे उन दीपकों की पावन कतारों को नमन है मातृवन्दना के गीत गाते गाते चूम  लिए फांसी वाले उन पुण्य हारों को नमन

हाय रे क्या होगा हिंदुस्तान

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कचरा है सिस्टम सारा रिश्वत अमृत की धारा नेता से सारे परेशान हाय रे क्या होगा हिंदुस्तान। आयी है कहाँ से दौलत किसका व्यापार बनके चोरी करके भी बैठे ये इज़्ज़तदार बनके नैया डुबोने वाले बैठे पतवार बनके चारा और नोट भाई सड़कें पुल तोपें खायी खाये शहीदों के मकान हाय रे क्या होगा हिंदुस्तान। मोटर और बंगला मांगे संग में अधिकार मांगे खाकर पच जाये सारा ऐसी डकार मांगे दिल्ली से अपने घर तक खुद की सरकार मांगें किस्मत बना दी इनकी अस्मत लुटती जन जन की करते नंगाई दिखा शान हाय रे क्या होगा हिंदुस्तान। कब बम कहाँ फट जाये कोई न जान पाए इतना उत्पादन फिर क्यों महंगाई बढ़ती जाये हालत अराजक फिर भी कैसी तरक्की हाय खाओ खिलाओ फंडा ये ही सबका एजेंडा घायल तिरंगे पे निशान हाय रे क्या होगा हिंदुस्तान। कचरा है सिस्टम सारा रिश्वत है अमृत धारा नेता से सारे परेशान हाय रे क्या होगा हिंदुस्तान।

वन्दे मातरम्

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आस्था का एकता सभ्यता का भावना का देश का हमारे स्वाभिमान वन्दे मातरम् देश पे शहीद हुए देश पे ही मर मिटे रणबांकुरों का अरमान वन्दे मातरम् रस्सी वाले फ़न देखो जिसने बनाया हार फांसी वाले तकते का गान वन्दे मातरम् माता से ही परीचय बाप का हमें है मिला खून की हमारे पहचान वन्दे मातरम् । देश प्रेमियों के भाल का यही अबीर बना भारती के गाल का गुलाल वन्दे मातरम् चिड़ियों को बाज़ से लड़ने का जो हौसला दे नौजवान खून का उबाल वन्दे मातरम् वंदना से इनकार जिनको है गम नहीं कहते नहीं कभी दलाल वन्दे मातरम् किन्तु याद रखना ए जाफरों की संतान देशद्रोहियों के लिए काल वन्दे मातरम्। ममता के पग तले जिसने है स्वर्ग कहा आपके रसूल को सलाम वन्दे मातरम् जिस घडी आपके नबी ने यह बात कही बन गया रब का कलाम वन्दे मातरम् माँ की यही वंदना है जिसको कबूल यहाँ उसके लिए तो है इनाम वन्दे मातरम् किन्तु जयचंद और मीर जाफरों के लिए सिर्फ-सिर्फ मौत का पैगाम वन्दे मातरम्।
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दूर अपने से किसी पल नहीं होने देती वो मुझे आँख से ओझल नहीं होने देती जाने वो कौन सा किरदार है जिसका किरदार इस कहानी को मुकम्मल नहीं होने देता जब वो लौटेगी सफर से मेरे घर आएगी ये भरोसा मुझे पागल नहीं होने देता दिल की देहलीज़ पे पसरा हुआ ये सन्नाटा शहर ए तन्हाई में हलचल नहीं होने देता मैं भी मजबूर हूँ महावर मेरा खुद्दार मिज़ाज़ बोरिये को कभी मखमल नहीं होने देता

छुक छुक छुक छुक रेल चली है जीवन की || chhuk chhuk rail chali hai jeevan ki

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छुक छुक छुक छुक रेल चली है जीवन की हँसना  रोना जागना सोना खोना पाना सुख दुःख सुख दुःख छोटी छोटी सी बात से लेकर मोटी मोटी ख़बरों तक ये गाड़ी ले जाएगी हमको माँ की गोद से कब्रों तक सब चिल्लाते रह जायेंगे रुक रुक रुक रुक छुक छुक छुक छुक रेल चली है जीवन की सामं बाँध के रखो लेकिन चोरों से होशियार रहो जाने कब चलना पड़ जाये चलने को तैयार रहो जाने कब  शीटी  बज जाये सिग्नल जाये झुक छुक छुक छुक छुक रेल चली है जीवन की पाप और पुण्य की गठरी बाँधें सत्य नगर को जाना है जीवन नगरी छोड़ के हमको दूर सफर को जाना है ये भी सोच लें हमने क्या क्या माल  किया है बुक छुक छुक छुक छुक रेल चली है जीवन की रात और दिन इस रेल के डिब्बे और साँसों का इंजन है उम्र हैं इस गाड़ी के पहिये और चिता स्टेशन है जैसे दो पटरी हो वैसे साथ चले सुख दुःख छुक छुक छुक छुक रेल चली है जीवन की

बलिदान रहेगा सदा अमर मर्दानी लक्ष्मीबाई का || कविता तिवारी की कविता झांसी की रानी || Kavita Tiwari poem on Jhansi Ki Rani lyrics

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निर्जला शुष्क सी धरती पर मानवता जब कुम्भलाती है जब घटाटोप अंधियारे में स्वातन्त्र्य घडी अकुलाती है जब नागफनी को पारिजात के सदृश बताया जाता है जब मानव को दानव होने का बोध कराया जाता है जब सिंघनाद की जगह शृगालों की आवाजें आती हैं जब कौओं के आदेशों पर कोयलें बाध्य हो गाती हैं जब अनाचार की परछाई सुविचार घटाने लगती है जब कायरता बनके मिशाल मन को तड़पने लगती है तब धर्म युद्ध के लिए हमेशा शस्त्र उठाना पड़ता है देवी हो अथवा देव रूप धरती पर आना पड़ता है। हर कोना भरा वीरता से इस भारत की अँगनाई का बलिदान रहेगा सदा अमर मर्दानी लक्ष्मीबाई का। गोरों की सत्ता के आगे वीरों के जब थे झुके भाल झांसी पर संकट आया तो जग उठी शौर्य की महाज्वाल अबला कहता था विश्व जिसे जब पहली बार सबल देखी भारत क्या पूरी दुनिया ने नारी की शक्ति प्रबल देखी फिर ले कृपाण संकल्प किया निज धरा नहीं बँटने दूँगी मेरा शीश भले कट जाये पर अस्तित्व नहीं घटने दूँगी । पति परम धाम को चले गए मैं हिम्मत कैसे हारूंगी मर जाऊँगी समरांगण में या फिर गोरों को मारूँगी। त्यागे श्रृंगार अवस्था के रण के आभूषण धार लिए जिन हाथों में कंगन खनके उन हाथों में

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