Posts

Showing posts from November, 2020

नदी बोली समन्दर से | Kunwar Bechain

नदी बोली समन्दर से, मैं तेरे पास आई हूँ। मुझे भी गा मेरे शायर, मैं तेरी ही रुबाई हूँ।। मुझे ऊँचाइयों का वो अकेलापन नहीं भाया लहर होते हुये भी तो मेरा मन न लहराया मुझे बाँधे रही ठंडे बरफ की रेशमी काया। बड़ी मुश्किल से बन निर्झर, उतर पाई मैं धरती पर छुपा कर रख मुझे सागर, पसीने की कमाई हूँ।। मुझे पत्थर कभी घाटियों के प्यार ने रोका कभी कलियों कभी फूलों भरे त्यौहार ने रोका मुझे कर्तव्य से ज़्यादा किसी अधिकार ने रोका। मगर मैं रुक नहीं पाई, मैं तेरे घर चली आई मैं धड़कन हूँ मैं अँगड़ाई, तेरे दिल में समाई हूँ।। पहन कर चाँद की नथनी, सितारों से भरा आँचल नये जल की नई बूँदें, नये घुँघरू नई पायल नया झूमर नई टिकुली, नई बिंदिया नया काजल। पहन आई मैं हर गहना, कि तेरे साथ ही रहना लहर की चूड़ियाँ पहना, मैं पानी की कलाई हूँ। --कुँवर बेचैन  

Lata Haya,"मैं हिंदी की वो बेटी हूँ जिसे उर्दू ने पाला है"- Ganga Jamuni

Image
मैं हिन्दी की वो बेटी हूँ, जिसे उर्दू ने पाला है अगर हिन्दी की रोटी है, तो उर्दू का निवाला है मुझे है प्यार दोनों से, मगर ये भी हकीकत है लता जब लडखडाती है, हाया ने ही सम्भाला है।  मैं जब हिन्दी से मिलती हूँ, तो उर्दू साथ आती है और जब उर्दू से मिलती हूँ, तो हिन्दी घर बुलाती है मुझे दोनों ही प्यारी है, मैं दोनों की दुलारी हूँ. इधर हिन्दी-सी माई है, उधर उर्दू-सी खाला है।  यहीं की बेटियाँ दोनों, यहीं पे जन्म पाया है. सियासत ने इन्हें हिन्दू व मुस्लिम क्यों बनाया है. मुझे दोनों की हालत एक-सी मालूम होती है कभी हिन्दी पे बंदिश है, कभी उर्दू पे ताला है।  भले अपमान हिन्दी का, हो या तौहीन उर्दू की खुदा की है कसम हरगिज, हया ये सह नहीं सकती मैं दोनों के लिए लडती हूँ, और दावे से कहती हूँ मेरी हिन्दी भी उत्तम है, मेरी उर्दू भी आला है। 

मेरे संग जय श्री राम कहो, राम मंदिर || राम मंदिर पर कविता तिवारी की कविता

Image
मन चंचल है तन व्यूहल है झंझावातों का है समूह अगणित प्रतिकूल परीक्षाएँ नित जीवन पथ लगता दुरूह विकृतियाँ कृतियों के दल का यदि फलादेश सी लगती हों संस्कृतियाँ चल विपरीत पंथ यदि मालाक्लेश सी लगती हों यदि काव्य तत्व के समीकरण संत्रास दिखाई देते हों यदि वर्तमान वाले अवगुण इतिहास दिखाई देते हों यदि मर्यादाएँ मार्ग छोड़ पथभ्रष्ट दिखाई देती हों यदि नराधमोह की अनुकृतियाँ उत्कृष्ट दिखाई देती हों कर दो विरोध के स्वर बुलंद सबके हित में परिणाम कहो निश्चित मत करो समय सीमा फिर सुबह कहो या शाम कहो तम हर अंतर्मन उज्जवल कर जय करुणाकर सुखधाम कहो यदि मुक्तिमार्ग चुनना चाहो मेरे संग जय श्री राम कहो। शुभ लक्ष्य लिए आए अतीत तब तो भविष्य के स्वप्न चुनो अन्यथा सहज पथ पर चलकर विक्षिप्त बनो निज शीश धुनो जो अन्धकार का अनुचर है अनुयायी है पथभ्रष्ट का औचित्य भला कैसे होगा ऐसे निकृष्ट परिशिष्टों का तुम याज्ञवल्क्य के वंशज हो नचिकेता जैसा तप लेकर हिरण्यकश्यप से युद्ध करो प्रह्लाद सरीखा जब लेकर धुन के जैसे पक्के वाले ध्रुव जैसे श्रेष्ट तपस्वी हो वह कृत्य करो अनुरक्ति भरो जिससे ये विश्व यशस्वी हो हों त्याज्य अशुभ कुल फलाद

Popular posts from this blog

बलिदान रहेगा सदा अमर मर्दानी लक्ष्मीबाई का || कविता तिवारी की कविता झांसी की रानी || Kavita Tiwari poem on Jhansi Ki Rani lyrics

टूटी माला जैसे बिखरी किस्मत आज किसान की | सुदीप भोला | किसान | Farmer's suicide

छुक छुक छुक छुक रेल चली है जीवन की || chhuk chhuk rail chali hai jeevan ki