जाने कब छल जाये उमरिया क्षण दो क्षण को प्यार करो....
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कैसा बैर कहाँ के बैरी आपस में मत खार करो
जाने कब छल जाये उमरिया क्षण दो क्षण को प्यार करो।
कितना अच्छा था बेचारा कल सीढ़ी से फिसल गया
वो भी अच्छा था कल जिसको भरा हुआ ट्रक कुचल गया
जीवन का एक लम्हा देखो उम्र समूची निगल गया
अच्छे अच्छे दमदारों का चुटकी में दम निकल गया
क्षण भंगुर ये उजियारा है किरणों का सत्कार करो
जाने कब छल जाये उमरिया क्षण दो क्षण को प्यार करो।
चाहे मन को समझाओ पर समझाने से क्या होगा
उस पर यह भी सच है आँसू ढुलकने से क्या होगा
पहले ही सोचा होता अब पछताने से क्या होगा
वो तो चला गया अब उसके गुण गाने से क्या होगा
मत लाशों पर फूल चढ़ाओ जीते जी श्रृंगार करो
जाने कब छल जाये उमरिया क्षण दो क्षण को प्यार करो।
किसने अपने अंतर्मन को सच्चे मन से तौला है
उसने नहीं मगर क्या तुमने अपना ह्रदय टटोला है
संबंधों का ठोस धरातल क्यों अंदर से पोला है
दिल से दिल की क्यों अनबन है घर घर आज अबोला है
हर गूँगे पल के अंतस में गुंजन का संचार करो
जाने कब छल जाये उमरिया क्षण दो क्षण को प्यार करो।
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