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Showing posts from March, 2020

नदी बोली समन्दर से | Kunwar Bechain

नदी बोली समन्दर से, मैं तेरे पास आई हूँ। मुझे भी गा मेरे शायर, मैं तेरी ही रुबाई हूँ।। मुझे ऊँचाइयों का वो अकेलापन नहीं भाया लहर होते हुये भी तो मेरा मन न लहराया मुझे बाँधे रही ठंडे बरफ की रेशमी काया। बड़ी मुश्किल से बन निर्झर, उतर पाई मैं धरती पर छुपा कर रख मुझे सागर, पसीने की कमाई हूँ।। मुझे पत्थर कभी घाटियों के प्यार ने रोका कभी कलियों कभी फूलों भरे त्यौहार ने रोका मुझे कर्तव्य से ज़्यादा किसी अधिकार ने रोका। मगर मैं रुक नहीं पाई, मैं तेरे घर चली आई मैं धड़कन हूँ मैं अँगड़ाई, तेरे दिल में समाई हूँ।। पहन कर चाँद की नथनी, सितारों से भरा आँचल नये जल की नई बूँदें, नये घुँघरू नई पायल नया झूमर नई टिकुली, नई बिंदिया नया काजल। पहन आई मैं हर गहना, कि तेरे साथ ही रहना लहर की चूड़ियाँ पहना, मैं पानी की कलाई हूँ। --कुँवर बेचैन  

Holi Special

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  क्या मोल भला उस दामन का जिस दामन के संग चोली न हो   वो जीवन बोझ बने भू पर जिसमें कुछ हास्य ठिठोली न हो   हर मन सन्यासी हो जाये यदि प्रीत की आँख मिचोली न हो   आषाढ़ सा हो जाये फागुन यदि फागुन के संग होली न हो।   रंग  ईद दिवाली होली मन के रंगों के त्योहार हैं  तन के रंग दो चार हैं लेकिन मन के रंग हजार हैं।  लाल गुलाबी नील पीले रंगों की अपनी भाषा  कोई रंग निराशा देता कोई देता है आशा  रंग जमा हो जब महफ़िल में पोर पोर थिरके तन का  स्वर्ग लगे धरती पर ही जब रंग चढ़े अपनेपन का  रंग मिलन के सजा रहे हैं ये सुन्दर संसार यहाँ  तन से तन को मन से मन को मिलने का अधिकार जहाँ  शाम सुबह के रंग हमारे जीवन के आधार हैं  तन के रंग दो चार हैं लेकिन मन के रंग हजार हैं। 

Women's Day Special

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मन स्वप्न देखता रह जाये तन अपनी भाषा कह जाये हो जाएँ पुतलियाँ सागर सी नैनो से गागर बह जाये जब अंदर अंदर से कोई हर दफ़न राज को खोलेगा फिर धरती में कम्पन होगा सागर का सैय्यम डोलेगा लेकिन यदि आप सचेत हुए पतझर बहार हो जायेगा तन में पवित्रता आएगी मन मोक्ष द्वार हो जायेगा आभामंडल बढ़ जायेगा युग का श्रृंगार हो जायेगा नारियाँ नहीं बच पायीं तो जग तार तार हो जायेगा। इसलिए आइये हमारे साथ आइये जिंदगी को अपनी न दाँव  लगाइये शपथ  तुरंत आज सब लोग खाइये देश को बचाना है तो नारियाँ बचाइए। स्वर  लता दे रही हैं जिसमें विष पीती मीराबाई हैं पदमिनी करें जौहर व्रत को बलिदानी पन्नाधाय हैं लक्ष्मीबाई जीजाबाई हैं उदाहरण बलिदानों के चढ़ श्रृंग शिखर बछेंद्री ने काटे हैं शीश जवानों के कल्पना चावला सी बेटी स्वर्णिम इतिहास रचाती है पुत्री कर्त्तव्य निभाने में इंदिरा अमर हो जाती है कल पायेगा जो बेटी को बोलो कैसे कल पायेगा नारियाँ नहीं बच पायीं तो जग तार तार हो जायेगा। इसलिए आइये हमारे साथ आइये सोये हुए वात्सल्य भाव को जगाइए  आज और कल में न समय गँवाईये देश को बचाना है तो नारियाँ बचाइए।                        

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