Posts

Showing posts from September, 2020

नदी बोली समन्दर से | Kunwar Bechain

नदी बोली समन्दर से, मैं तेरे पास आई हूँ। मुझे भी गा मेरे शायर, मैं तेरी ही रुबाई हूँ।। मुझे ऊँचाइयों का वो अकेलापन नहीं भाया लहर होते हुये भी तो मेरा मन न लहराया मुझे बाँधे रही ठंडे बरफ की रेशमी काया। बड़ी मुश्किल से बन निर्झर, उतर पाई मैं धरती पर छुपा कर रख मुझे सागर, पसीने की कमाई हूँ।। मुझे पत्थर कभी घाटियों के प्यार ने रोका कभी कलियों कभी फूलों भरे त्यौहार ने रोका मुझे कर्तव्य से ज़्यादा किसी अधिकार ने रोका। मगर मैं रुक नहीं पाई, मैं तेरे घर चली आई मैं धड़कन हूँ मैं अँगड़ाई, तेरे दिल में समाई हूँ।। पहन कर चाँद की नथनी, सितारों से भरा आँचल नये जल की नई बूँदें, नये घुँघरू नई पायल नया झूमर नई टिकुली, नई बिंदिया नया काजल। पहन आई मैं हर गहना, कि तेरे साथ ही रहना लहर की चूड़ियाँ पहना, मैं पानी की कलाई हूँ। --कुँवर बेचैन  

ग़ज़ल--"नए सिरे से...."

Image
तुम्हारे हाथों से कोई दामन छुड़ा के जाये तो मुझसे कहना कभी मोहब्बत में दिल तुम्हारा फरेब खाये तो मुझसे कहना अगर वो दिल साफ़ करके हमसे गले मिलेंगे नए सिरे से तो हम भी कायम करेंगे उनसे तमाम रिश्ते नए सिरे से समझ के मिट्टी का एक खिलौना फिर आ गए दिल को तोड़ने तुम  अभी तो जोड़े हैं हमने दिल के तमाम टुकड़े नए सिरे से  हम बाद मुद्दत के इसलिए आज उनकी महफ़िल में जाके बैठे  सुनेंगे उनसे मुहब्बतों के तमाम किस्से नए सिरे से  किसी में हिम्मत नहीं है पूछे कि बागबान का है क्या इरादा  बना रहा है क्यों वो हमारे चमन की नक़्शे नए सिरे से 

बेरोजगारी कविता

Image
  वादों का सब्जबाग आपने दिखाया खूब कागज का पेड़ था तो फूल भी खिला नहीं नाली वाली गैस से सिलेंडर भरा नहीं सब्सिडी हेतु कोई शिकवा गिला नहीं माल्या लेके भगा माल किन्तु वो हमारा अभी जीरो वैलंस वाला खाता तो खुला नहीं हम रोजगार में पकौड़ा तलने चले थे क्या करें उधारी में तो बेसन मिला नहीं। दीमक डिग्री चाटते क्या कर पाए आप बच्चों की फीस कौन भरे बेरोजगार हैं बाप साँप जीवन को काटे, जुमले क्या धर के चाटें। जब युवा साथ में बोलेंगे एक नहीं दो नहीं सैकड़ों सिंहासन फिर डोलेंगे।

ग़ज़ल #2

Image
  खुशनुमा फूल तरोताज़ा हवा माँगे है मुझसे मेहबूब मेरा महरोवफ़ा माँगे है याद करके तेरी अंगड़ाई का आलम तौबा आइना फिर वही अंदाजो- अदा माँगे है तेरी तश्वीर बनाने के लिए मेरी कलम  चाँद से नूर सितारों से ज़िया माँगे है  जितनी चादर है तेरी पाँव भी उतने फैला  क्यों लिवास अपने लिए खुद से बड़ा माँगे है  जिनके दामन में जफ़ाओं के सिवा कुछ भी नहीं  क्यों न वो तुम से बफाओं का सिला माँगे है                                                                                                 --मनीष महावर 

Teacher's Day

Image
 भव सागर से पार उतरने निकला था संसार में लेकिन नैय्या डूब रही है कष्टों के मंझधार में कूल कहाँ प्रतिकूल, हिलोरें मार रहा ठहरा पानी गूढ़ गति काया से निकसी स्वतः गति जब जानी। तब दाता ने मुझको हिम्मत की परिभाषा बतलायी  अन्धकार में छिपे मणिक की परछायी तब दिखलाई  देख कथानक थर्राया मैं काँप उठा पछतावे में  गुरु की महिमा जान पढ़ी तो रो बैठा सन्नाटे में।  गुरु की दीक्षा ऐसी है जो न मिलती अख़बारों में  वो शब्दों की दीपशिखा है अँधियारे गलियारों में  वो जीवन का राजदूत है, सकल राष्ट्र निर्माता है  न जाने इसके बदले में क्या कुछ वो पा जाता है  नहीं दिया है उसको कुछ भी, शर्मसार  जाता हूँ  इसीलिए मैं दुनिया को गुरु की महिमा बतलाता हूँ।  कोमल हृदयी उस मानव ने हम सबको ही अपनाया है  धर्म जाति का भेद भुलाकर सबको गले लगाया है   प्रेम,प्रतिज्ञा,धैर्य,मर्म का पाठ हमें बतलाया है  त्याग,तपस्या, देशभक्ति मंचन भी सिखलाया है  ऐसी मूरत पाकर मैं धन्य धन्य हो जाता हूँ , इसीलिए मैं दुनिया को गुरु की महिमा बतलाता हूँ।  गुरु को पंक्ति में बाँध सकूँ, मेरी इतनी औकात कहाँ  उस अमृत के सम्मुख मेरे विष की  बिसात कहाँ  लेकिन उस

Popular posts from this blog

बलिदान रहेगा सदा अमर मर्दानी लक्ष्मीबाई का || कविता तिवारी की कविता झांसी की रानी || Kavita Tiwari poem on Jhansi Ki Rani lyrics

टूटी माला जैसे बिखरी किस्मत आज किसान की | सुदीप भोला | किसान | Farmer's suicide

छुक छुक छुक छुक रेल चली है जीवन की || chhuk chhuk rail chali hai jeevan ki