नदी बोली समन्दर से | Kunwar Bechain

नदी बोली समन्दर से, मैं तेरे पास आई हूँ। मुझे भी गा मेरे शायर, मैं तेरी ही रुबाई हूँ।। मुझे ऊँचाइयों का वो अकेलापन नहीं भाया लहर होते हुये भी तो मेरा मन न लहराया मुझे बाँधे रही ठंडे बरफ की रेशमी काया। बड़ी मुश्किल से बन निर्झर, उतर पाई मैं धरती पर छुपा कर रख मुझे सागर, पसीने की कमाई हूँ।। मुझे पत्थर कभी घाटियों के प्यार ने रोका कभी कलियों कभी फूलों भरे त्यौहार ने रोका मुझे कर्तव्य से ज़्यादा किसी अधिकार ने रोका। मगर मैं रुक नहीं पाई, मैं तेरे घर चली आई मैं धड़कन हूँ मैं अँगड़ाई, तेरे दिल में समाई हूँ।। पहन कर चाँद की नथनी, सितारों से भरा आँचल नये जल की नई बूँदें, नये घुँघरू नई पायल नया झूमर नई टिकुली, नई बिंदिया नया काजल। पहन आई मैं हर गहना, कि तेरे साथ ही रहना लहर की चूड़ियाँ पहना, मैं पानी की कलाई हूँ। --कुँवर बेचैन  

अब तो हो गया बंटाधार पड़ रही महँगाई की मार.....


अब तो हो गया बंटाधार पड़ रही महँगाई की मार महँगाई की मार सबका भला करे करतार भिंडी भौहें तान रही है,आलू आँख तरेरे लौकी बैंगन तोरई कद्दू, मूली तक मुँह फेरे पालक को तो चढ़ा बुखार सबका भला करे करतार। लड्डू बर्फी वर्षों से थाली में थे ही किसके हलवा पूड़ी खीर कचौड़ी धीरे धीरे खिसके अब चटनी भी हुई फरार सबका भला करे करतार। बोरा भर नोटों के बदले चुटकी भर लो हींग गुड़ गायब थाली से जैसे गधे के सिर से सींग राई सौ रुपये की चार सबका भला करे करतार। रेट सुना जब शक्कर का तो पर्स को आया चक्कर दाल के दाने निकल पड़े चावल से लेने टक्कर चावल ने खींची तलवार सबका भला करे करतार। बढ़ा किराया देख दिसंबर भी लगता है जून नया कपल हनीमून मनाने निकला देहरादून लेकिन पहुँच गया हरिद्वार सबका भला करे करतार। नल्ले मानुस काम न धंधा बैठे खाली रूम पेट्रोल दारू दाम बराबर घूमो या लो झूम केवल जुमलों की सरकार सबका भला करे करतार।

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