नदी बोली समन्दर से | Kunwar Bechain

नदी बोली समन्दर से, मैं तेरे पास आई हूँ। मुझे भी गा मेरे शायर, मैं तेरी ही रुबाई हूँ।। मुझे ऊँचाइयों का वो अकेलापन नहीं भाया लहर होते हुये भी तो मेरा मन न लहराया मुझे बाँधे रही ठंडे बरफ की रेशमी काया। बड़ी मुश्किल से बन निर्झर, उतर पाई मैं धरती पर छुपा कर रख मुझे सागर, पसीने की कमाई हूँ।। मुझे पत्थर कभी घाटियों के प्यार ने रोका कभी कलियों कभी फूलों भरे त्यौहार ने रोका मुझे कर्तव्य से ज़्यादा किसी अधिकार ने रोका। मगर मैं रुक नहीं पाई, मैं तेरे घर चली आई मैं धड़कन हूँ मैं अँगड़ाई, तेरे दिल में समाई हूँ।। पहन कर चाँद की नथनी, सितारों से भरा आँचल नये जल की नई बूँदें, नये घुँघरू नई पायल नया झूमर नई टिकुली, नई बिंदिया नया काजल। पहन आई मैं हर गहना, कि तेरे साथ ही रहना लहर की चूड़ियाँ पहना, मैं पानी की कलाई हूँ। --कुँवर बेचैन  

आओ आत्महत्या करें!| Stop suicide

 

आओ मित्र आत्महत्या करें। क्यों चौंक रहे हो ? क्यों बुरा मान रहे हो? मेरी तरफ इतना आश्चर्य से मत देखो। अगर तुम्हें कुछ अनुचित लगा तो अपने शब्द वापस लिए लेता हूँ। किन्तु सोचिये मैं न कहूँ- तो भी आमंत्रित तो तुम हो ही और आत्महत्या तो तुम कर ही रहे हो। भेद मात्र शब्द और उसकी शैली का है, न कि क्रिया और उसके संपादन का। अपनी स्पष्टवादिता के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ। 

आपने मेरा आमंत्रण तो ठुकरा दिया, उन आमंत्रणों की उपस्थिति को कैसे नकारोगे जो तुम्हें उत्तेजित करते हैं कि एक झटके में अपने कमाए जीवन को गँवा दिया जाये, एक असफलता के कारण जीवन भर कमाई सैकड़ों सफलताओं को रद्दी मान लिया जाये, बचपन से संजोये सपनों को साकार न होने दिया जाये, अपने ही संरक्षकों को ठेंगा दिखाकर उनकी गढ़ी कमाई को धता बता दिया जाये।

भाई मेरे- घोरतम निर्लज्जों की भाँति ये कौन है जो मनचाही प्रेमिका को पाने के लिए कुछ भी और किसी को भी खोने को तैयार है? फटे और निकम्मे जूते से भी कम मोह का परिचय देता हुआ ये कौन है जो अपने दोस्त से 2 पैसे कम की नौकरी मिलने पर खुद को शून्येतर बनाने की राह पर अग्रसर होने को है? आखिर ये कौन है जो अरबों की दौलत का आसामी होने पर भी स्वयं को अभावों से घिरा मान रहा है? दुनिया भर को आस्था बाँटने वाले वो कौन संत-महंत हैं जिनकी स्वयं की आस्था डोल गयी? कौन है जो लाटरी न निकलने पर और निकलने पर भी प्राणांत करता है।  यह किसका आमंत्रण है? अथवा कौन आमंत्रित है? 

‘आत्महत्या’ तो मेरा शब्द है, तुम इसके आमंत्रणों को क्या कहोगे? और क्या संज्ञा दूँ उन कार्यों को जो इस आमंत्रण के प्रोत्साहन पर तुम कर रहे हो। अपने सगों और संमुखों की भावनाओं को चोट पहुँचाते समय तुम्हें प्रतीति होती है कि तुम आत्महत्या कर रहे हो? अगर नहीं होती तो सच मानिये कि आप आत्महत्या कर नहीं रहे हैं अपितु कर चुके हैं। मैं बहुत निराश और हताश नहीं हूँ पर एक छलावरण की चकाचौंध के वश में सबकुछ अनदेखा करने पर जो मृतप्राय अवस्था होती है वही आत्महत्या है।

 ‘आत्महत्या’ तो शब्द मात्र ही है। इस क्रिया में भी कई भेद हैं। यह शब्द तो उन सभी घटनाओं के लिए प्रयुक्त हो सकता है जो खुद मरने वाले की सकारात्मक और नकारात्मक क्रिया का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष परिणाम होती हो, जिसके परिणाम को वो जानता हो। उदाहरण के लिए भोजन न करना भी उतना ही आत्मघाती साबित हो सकता है जितना कि खुद को पिस्तौल से गोली मरना। 

आमंत्रण को स्वीकारने वाला ही उत्तरदायी है अथवा ये व्यक्ति विशेष के मानसिक दिवालियापन का परिणाम है? ऐसा नहीं है। आत्महत्या तो सामाजिक घटना है जिसके पीछे के कारण भी सामाजिक हैं। जिस तरह से अहंवादी आत्महत्या की घटना में व्यक्ति के सामाजिक रिश्तों का ताना बाना इतना ढीला हो जाता है अर्थात समाज में उसकी कोई जगह नहीं है अथवा समाज में तिरस्कृत व्यक्ति के अहम को ठेस पहुँचती है या पहुँचायी जाती है। क्या ये वही समाज नहीं है जो खोखली आस्थाओं और विश्वासों के दम से व्यक्ति के सामाजिक जीवन का यूँ एकीकरण करता है जिसमें उस व्यक्ति के व्यक्तित्व का मूल्य अर्थहीन लगने लगता है, जिसके चलते व्यक्ति केवल और केवल यंत्रवत समूहिक हित और विचार के कार्यों का अनुसरण करता है और परिणाम परार्थवादी आत्महत्या। क्या यह समाज ही नहीं है जिसने एकांकी जीवनशैली को इतनी तूल दी और विलासिताओं का इतना अम्बार खड़ा कर दिया? जब कभी व्यक्ति का सामना उन अस्वाभाविक परिस्थितियों से होता है, जिनका अनुकूलन वह नहीं कर पाता और अस्वाभाविक आत्महत्याएँ होती हैं?सामाजिक प्राणी होने के नाते ही सही:आत्महत्या क्या केवल जीव ही करता है या समाज भी? इस तरह के समाज को आमंत्रण कहेंगे या प्रस्तावक या कुछ और? यहाँ कौन आमंत्रित है? 

इतिहास चूँकि दुर्घटनाओं के विवरणों का ही संकलन है, अतः पढ़कर उससे सीख लेने और निराश होने का औचित्य नहीं। इसलिए आत्मसंतुष्टि, छलावरण की चकाचौंध, कोई क्या कहेगा आदि के आमंत्रणों /स्वरों को उसमें स्थान दिलाने का वायदा तो कोई नहीं कर सकता परन्तु उन आमंत्रणों /स्वरों के प्रति कृतज्ञ होकर यह प्रार्थना अवश्य की जा सकती है कि आत्महत्याओं की यह कौम शीघ्र ही क्षीण होते होते समाप्त हो जाएगी। परिस्थितियों से लड़ें ध्यान रखें कि जीवन की गंगा का पानी कभी भी इतना नहीं उतरता कि निराशा का रसातल दिखने लगे।

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