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Showing posts from July, 2020

नदी बोली समन्दर से | Kunwar Bechain

नदी बोली समन्दर से, मैं तेरे पास आई हूँ। मुझे भी गा मेरे शायर, मैं तेरी ही रुबाई हूँ।। मुझे ऊँचाइयों का वो अकेलापन नहीं भाया लहर होते हुये भी तो मेरा मन न लहराया मुझे बाँधे रही ठंडे बरफ की रेशमी काया। बड़ी मुश्किल से बन निर्झर, उतर पाई मैं धरती पर छुपा कर रख मुझे सागर, पसीने की कमाई हूँ।। मुझे पत्थर कभी घाटियों के प्यार ने रोका कभी कलियों कभी फूलों भरे त्यौहार ने रोका मुझे कर्तव्य से ज़्यादा किसी अधिकार ने रोका। मगर मैं रुक नहीं पाई, मैं तेरे घर चली आई मैं धड़कन हूँ मैं अँगड़ाई, तेरे दिल में समाई हूँ।। पहन कर चाँद की नथनी, सितारों से भरा आँचल नये जल की नई बूँदें, नये घुँघरू नई पायल नया झूमर नई टिकुली, नई बिंदिया नया काजल। पहन आई मैं हर गहना, कि तेरे साथ ही रहना लहर की चूड़ियाँ पहना, मैं पानी की कलाई हूँ। --कुँवर बेचैन  

Friendship Day special

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अपनी जुबां से खुद ही मुकरने लगे हैं दोस्त पत्तों की तरह आज बिखरने लगे हैं दोस्त मुमकिन है आसमां पे सितारे बिखेर दें अब पंछियों के पर को कतरने लगे हैं दोस्त दुश्मन का कोई खौफ नहीं आज दोस्तों घर घर में अब भाई से बनने लगे हैं दोस्त इस दौर का मिज़ाज भी ऐसा बदल गया इक दूसरे के दिल से उतरने लगे हैं दोस्त रफीकों का पहले जिससे कोई वास्ता न था   महावर वो काम शौक से करने लगे हैं दोस्त     पत्तों की तरह आज बिखरने लगे हैं.........  

गज़ल

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अब वो हमे नया जख्म लगाने वाले हैं,    किसी ने कहा था उनसे हम मुस्कुराने वाले हैं। अभी अभी तो एतबार किया है उनपर, अभी कुछ देर में वो दिल दुखाने वाले हैं। हम क्यों देखें गर्म सूरज का ये घमण्ड,  हम लोग तो दिया जलाने वाले हैं। हम भी झूठ पर ऐतबार करना सीख रहे हैं,  कोई कह रहा था कि चुनाव आने वाले हैं।    बेगुनाह हो के भी सजा काट रहा हूँ मैं, क्योंकि कातिल मुंशी के अपने वाले हैं।     अपने किरदार से कुछ कम कर रहा हूँ मैं ,  पता चला है वो हमे आज़माने वाले हैं।  सुबह सुबह तो मजहब पर बहस हुई है,  शाम तक देख ये दंगे भड़काने वाले हैं।  जरूरत खत्म होने पर रिश्ता तोड़ लेते हैं,  पता था अपने नहीं किराये वाले हैं।   तेज बारिश में नहाने का सूकून तो वही जानें,  हम लोग तो कच्चे मकानों वाले हैं।

Engineering Students Farewell Poem

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ये साल कुछ बेमिसाल जा रहा था   छोड़कर अधूरे से सवाल जा रहा था   शब्द तो बहुत कम हैं मेरे पास   सीनियर्स की बोली मैं कहूँ तो बवाल जा रहा था   पर कुछ तो बात होती है न यारों   कल तक जिनको बस सीनियर्स कहते थे उनसे भी लगाव हो जाता है   कॉलेज छोड़ने का घाव हो जाता है  मगर जानता हूँ कह कौन पता है  इंजीनियरिंग के इन सालों में रोज कोसते थे  अरे यही क्यों लिया बस ये सोचते थे  पर इसने भी कुछ तो जीना सिखाया है  जिंदगी क्या है इसका आइना दिखाया है  दोस्त मिले अजीब से मगर जान बन गए  जब भी जरूरत पड़ी तो मेहरबान बन गए  धुप सी लगी तो आसमान बन गए  अपना न दिखा कोई तो दूसरा जहान बन गए  हुई नोक-झोंक भी तीखी थी  शायद इससे भी एक बात सीखी थी  कि इंजीनियर बनाना जानता है बिगाड़ना नहीं  और बंदी किसी और की हो तो ताड़ना नहीं।  कईओं को अपने जोड़े मिले  तो कुछ ने भाईचारे में काट दिए  उनकी तो कुछ पूछ लो यार  सिंगल ही चार साल उस बेचारे ने निकाल दिए  लाइफ में कुछ faculty भी थे  चंगु और मांगू को झेलना  अपनी मजबूरी की गाडी को पेलना  सच में बहुत मुश्किल है पर इसी से तो अपनी मंज़िल है।  कुछ लोग उम्दा थे  तो कुछ में कारीगरी थी  स्क

college farewell poem

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                जाने कैसी हलचल है जाने कैसा ये गम है   हैं उदास तारीखें और चुप कैलेंडर है   मैंने खुद से जब पूछा क्यों उदास मंजर है   दिल ये चीख कर बोला आज 18 जुलाई है।   तुम्हें मदहोश जो कर दे वो जादू साथ लाया हूँ   तुम्हारे चाहने वालों के आँसू साथ लाया हूँ  मेरे साथियों सौगात देने के लिए तुमको  पुरानी याद के लम्हों की खुशबु साथ लाया हूँ।  मैं यहाँ प्यार का हर एक चमन चाहता हूँ  मैं ज़मज़म गंगा का मिलान चाहता हूँ रहे साथ हिन्दू मुसलमान मिलकर  दुआओं में बस मैं यही मांगता हूँ।  खुद दामन रफू करके लिखता हूँ मैं  जख्म से गुफ्तगु करके लिखता हूँ मैं  दर्द गाने को भी हौसला चाहिए आंसुओं से वजू करके लिखता हूँ मैं।  अपनी सांसों में आबाद रखना मुझे  मैं रहूं न रहूँ याद रखना मुझे। 

बोल जमूरे बोल तेरे लव पे क्यों ताला है।

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अंधियारों ने ग्रहण रख लिया,थोड़ा तो उजाला है बोल जमूरे बोल तेरे लव पे क्यों ताला है। जिनको जिम्मेदार बनाया वो सब डांकू निकले सारे कौए ओढ़ के खद्दर आज बन गए बगुले ससंद से पंचायत तक सब गड़बड़ झाला है  बोल जमूरे बोल तेरे लव पे क्यों ताला है। कुर्सी है आराध्य देव और दिल्ली तीर्थ धाम  बढ़ते हैं अब दाम रोज पर गायें राम का नाम  छीन लिया मुख से गरीब के आज निवाला है  बोल जमूरे बोल तेरे लव पे क्यों ताला है। कैसा प्रजातंत्र है अपना कैसी ये आजादी  स्वार्थ के भक्तों भावी पीढ़ी दांव लगा दी  सिसक सिसक कर रोता पर्वतराज हिमाला है  बोल जमूरे बोल तेरे लव पे क्यों ताला है।                                                                                                       --मनीष महावर 

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