नदी बोली समन्दर से | Kunwar Bechain

नदी बोली समन्दर से, मैं तेरे पास आई हूँ। मुझे भी गा मेरे शायर, मैं तेरी ही रुबाई हूँ।। मुझे ऊँचाइयों का वो अकेलापन नहीं भाया लहर होते हुये भी तो मेरा मन न लहराया मुझे बाँधे रही ठंडे बरफ की रेशमी काया। बड़ी मुश्किल से बन निर्झर, उतर पाई मैं धरती पर छुपा कर रख मुझे सागर, पसीने की कमाई हूँ।। मुझे पत्थर कभी घाटियों के प्यार ने रोका कभी कलियों कभी फूलों भरे त्यौहार ने रोका मुझे कर्तव्य से ज़्यादा किसी अधिकार ने रोका। मगर मैं रुक नहीं पाई, मैं तेरे घर चली आई मैं धड़कन हूँ मैं अँगड़ाई, तेरे दिल में समाई हूँ।। पहन कर चाँद की नथनी, सितारों से भरा आँचल नये जल की नई बूँदें, नये घुँघरू नई पायल नया झूमर नई टिकुली, नई बिंदिया नया काजल। पहन आई मैं हर गहना, कि तेरे साथ ही रहना लहर की चूड़ियाँ पहना, मैं पानी की कलाई हूँ। --कुँवर बेचैन  

सबसे करबद्ध निवेदन है, "बोलो भारत माता की जय" | Kavita Tiwari | देशभक्ति कविता

( पूरी कविता सुनें ) 

माँ धरती धरती है संयम सहती है खुद पर प्रबल भार कितने भी कोई जुल्म करे पर नही कभी मानती नहीं हार इस वसुंधरा पर अखिल विश्व जिसकी भौगोलिक भाषा है प्रत्येक खण्ड में सजे देश उन सब की यही अभिलाषा है हर एक देश को नाज़ रहा सच्चा है अथवा झूठा है कर्तव्यों और उपायों से निर्मित सम्मान अनूठा है निज आर्यवर्त की ओर ध्यान आकृष्ट कराने आई हूँ कुछ शब्द सुमन वाली कविता स्वागत में चुनकर लायी हूँ अपने अतीत का ज्ञान तत्व हम सबको यह बतलाता है नीतियाँ समर्पण वाली हों तो इतिहास अमर हो जाता है चाहे हो कलुषित भाव किन्तु दिखलादो अपना सरल हृदय सबसे करबद्ध निवेदन है,"बोलो भारत माता की जय"। छः ऋतुओं वाला श्रेष्ठ देश दुनिया का सबसे ज्येष्ठ देश अध्ययन करने पर पाओगे पूरी वसुधा पर है बिशेष सभ्यता जहाँ पर जिंदा है पूजे जाते हैं संस्कार कल कल करती पवित्र पावन नदियाँ ले धवल धार हिमवान किरीट बना जिसका उत्तर में प्रहरी के समान दक्षिण में सिंधु पखार चरण देता रहता है अभयदान पूरव में खाड़ी का गौरव सीमा को रक्षित करता है पश्चिम में अपना अरब सिंधु निज गुरुता का दम भरता है त्योहार अनूठे लगते हैं व्यवहार अनूठे लगते हैं खोजो तो पाओगे जबाव मनुहार अनूठे लगते है ऐसी है भारत की धरती रहता है जहाँ जीव निर्भय सत्ता से यदि हो गयी चूक तो ईश्वर करता है निर्णय होगा बाल न बबाँका हरगिज़ कर लोगे यदि मन में निश्चय सबसे करबद्ध निवेदन है,"बोलो भारत माता की जय"। मजदूर जहाँ श्रम साधक है उस भूमि भाग का क्या कहना नित मेहनत का आराधक है उस भूमि भाग का क्या कहना बढ़ती ही रहती है प्रतिपल भारत माता की अमिट शान पोषित करती है जो संज्ञा हम सब उसको कहते किसान दर्शन दर्पण का करो चित्र हर ओर भला है चंगा है लहराता नील गगन पथ पर वह अपना पूज्य तिरंगा है तैयार हमेशा रहते हैं दुश्मन का दर्प मिटाने को सकुचाते नहीं किशोर यहाँ बली वेदी पर चढ़ जाने को बचना है या फिर मारना है करना है सिर्फ अखंड अजय सैनिक सनंत समर्पित है संकल्प लिए मन में निश्चय हम इसे नहीं बँटने देंगे चाहे आ जाये महाप्रलय सबसे करबद्ध निवेदन है,"बोलो भारत माता की जय"।


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