नदी बोली समन्दर से | Kunwar Bechain

नदी बोली समन्दर से, मैं तेरे पास आई हूँ। मुझे भी गा मेरे शायर, मैं तेरी ही रुबाई हूँ।। मुझे ऊँचाइयों का वो अकेलापन नहीं भाया लहर होते हुये भी तो मेरा मन न लहराया मुझे बाँधे रही ठंडे बरफ की रेशमी काया। बड़ी मुश्किल से बन निर्झर, उतर पाई मैं धरती पर छुपा कर रख मुझे सागर, पसीने की कमाई हूँ।। मुझे पत्थर कभी घाटियों के प्यार ने रोका कभी कलियों कभी फूलों भरे त्यौहार ने रोका मुझे कर्तव्य से ज़्यादा किसी अधिकार ने रोका। मगर मैं रुक नहीं पाई, मैं तेरे घर चली आई मैं धड़कन हूँ मैं अँगड़ाई, तेरे दिल में समाई हूँ।। पहन कर चाँद की नथनी, सितारों से भरा आँचल नये जल की नई बूँदें, नये घुँघरू नई पायल नया झूमर नई टिकुली, नई बिंदिया नया काजल। पहन आई मैं हर गहना, कि तेरे साथ ही रहना लहर की चूड़ियाँ पहना, मैं पानी की कलाई हूँ। --कुँवर बेचैन  

अबकी नवदुर्गा


पर्व,त्यौहार,व्रत और उत्सव हमारे देश के प्राण हैं,हमारी संस्कृति की आधारशिला हैं। प्रत्येक त्यौहार का एक अर्थ है, उद्देश्य है और यही कारण है कि हमारे पूर्वजों द्वारा बनाये गए व्रत और त्यौहारों की परम्परा आदिकाल से आज तक वैसी ही चली आ रही है। जैसे कि सम्पूर्ण राष्ट्र को एक सूत्र में बाँधने वाले नवरात्र।नवरात्र के कुछ रहस्य हैं या कहें विशिष्टताएँ हैं। 

शक्ति के आवाह्न का उत्सव है नवरात्री,अनुशासन से आत्मशक्ति जाग्रत करने का अवसर है नवरात्री, काम-क्रोध-मद-लोभ जिंतने भी विकार हैं सबको पीछे छोड़ कर अपने मन पर विजय पाने का उत्सव है नवरात्री है। नवरात्र का अर्थ है नौ रातें। इन रातों का विशेष रहस्य है। शायद हमारे ऋषि मुनियों ने साधना के लिए दिन की अपेक्षा रात्री को अधिक महत्व(उचित) दिया यही कारण है कि हमारे कुछ बहुत बड़े त्यौहार दीपावली, शिवरात्री,नवरात्र, होलिका दहन, दशहरा आदि रात में ही मनाये जाते हैं। 

सिद्धि और साधना की दृष्टि से नवरात्र बहुत महत्वपूर्ण हैं। इन नवरात्रों में समाज व्रत, सैयम, नियम, अनुशासन, भजन, यज्ञ, पूजा आदि से अपने भीतर की आध्यात्मिक शक्ति को जाग्रत करता है। नवरात्र में देवी के नौ रूपों की आराधना का विधान है अतः ये प्रकृति के अलग अलग रुपों को समझने और आत्मसात करने का त्यौहार है। इन नौ दिनों में हम एकमन होकर शक्ति का संचय करते हैं ठीक वैसे ही जैसे एक शिशु नौ महीने गर्भ में रहकर सब आत्मसात कर लेता है। ये नौ की संख्या भी विशेष है। नौ तक की ही गिनती बिना दोहराकर पढ़ी जाने वाली सबसे बड़ी गिनती है. बस एक से नौ तक। नवधा भक्ति, नौ रस, नौ रंग और नवरात्री के नौ दिन। 

सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सवार्थ साधिके शरण्येत्र्यंबके गौरी नारायणी नमोस्तुते

सभी का मंगल और कल्याण करने वाली देवी, आपको नमन है। आदिस्वरूपा माँ पार्वती,लक्ष्मी और सरस्वती के नौ शक्ति स्वरूपों श्री शैलपुत्री,श्री ब्रह्मचारिणी,श्री चंद्रघंटा,श्री कूष्माण्डा,श्री स्कंदमाता,श्री कात्यायनी,श्री कालरात्रि, श्री महागौरी,श्री सिद्धिदात्री का पूजन पूरे विधान से किया जाता है, इन्हें हम नौदुर्गा भी कहते हैं। ये देवी का वो रूप है जिसमें एक और दया है,तप है, त्याग है ओर दूसरी और अभिमान है, हठयोग है। एक और क्षमादान है तो दूसरी ओर क्रोध,मान मर्दन भी है। ये वही स्त्री शक्ति है जो सृजन करती है किन्तु आ पड़े तो विनाश करने की ताकत भी रखती है। 

वैसे तो नवरात्री साल में चार बार आती है- दो गुप्त और दो प्रकट। वासंतिक नवरात्र गर्मी की आहट लेकर तो शरदिया नवरात्र सर्दी के संकेत लेकर आता है।आप ध्यान से देखेंगे तो पाएँगे कि  हमारे सभी त्यौहार ऋतु परिवर्तन से बंधे हुए हैं। अर्थात हमारे पूर्वजों को मौसम के इस बदलाव के व्यवहारिक पक्ष का गहन ज्ञान था इसलिए हमारे पूर्वजों ने वर्ष में  प्रकट नवरात्रों की स्थापना की होगी। तो क्या हम नवरात्र को प्रकृति के बदलावों का सम्मान नहीं कह सकते? जिस प्रकार कोरोना ने हमें सिखाया है कि खानपान, नियम, योग आदि के बिना प्रकृति भी शरीर का साथ नहीं देती ठीक उसी तरह ये नौ व्रत जीवन में अनुशासन का पर्याय है। 

दोनों नवरात्र हमको श्री राम की भाँति जीवन जीना भी सिखाते हैं। दोनों प्रकट नवरात्रों का श्री राम से सम्बन्ध बहुत अटूट है। चैत्र नवरात्री की नवमी को राम जन्म लेते हैं और क्वार नवरात्र की नवमी को शक्तिपूजन के पश्चात् दशमी को रावण का वध करते हैं। 

नवरात्र का सबसे सशक्त सन्देश है स्त्री जाति का सम्मान। हमारी संस्कृति सदा कहती आयी है "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।" हमारी सांस्कृतिक चेतना सदैव पराक्रमी और स्त्री को सम्मान देने वाली रही है। किन्तु कभी कभी जब विरोधाभासी सच्चाईयाँ सामने आती हैं तो  नवरात्री हमें याद दिलाती है कि नारी का अपमान संपूर्ण मानवजाति का अपमान है। ये कहना कतई गलत नहीं होगा कि नवरात्री हमारी बिगड़ी हुई परिभाषाओं को सम्भालने का मौका है। 

नवरात्री तो इसलिए ही आती है ताकि नारी के सम्मान की परम्परा बनी रहे। कन्या भ्रूण हत्या, बलात्कार, भेदभाव, दुर्व्यवहार, उत्पीड़न, घरेलु हिंसा, दहेज़ उत्पीड़न आदि सब बंद होने चाहिए। नारी में अद्भुद शक्ति है या कहें कि नारी ही एकमात्र शक्ति है। अतः स्त्री सहनशील होकर पृथ्वी जैसी दृढ हो सकती है तो अन्याय हेतु वो विध्वंश की क्षमता भी रखती है। 


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