क्या दशा कर दी ये मेरी, क्या करूँ लाचार हूँ मैं
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शृष्टि की शुभ कल्पना मैं, सप्त स्वर की अर्चना मैं
यूँ तो हूँ मैं मौन लेकिन, आ पड़े तो गर्जना मैं
सार हूँ श्रृंगार हूँ, अधिकार हूँ, अविकार हूँ मैं
क्या दशा कर दी ये मेरी, क्या करूँ लाचार हूँ मैं
रेशमी अहसास हूँ मैं, शबनमी मधुमास हूँ मैं
हूँ अमर तृप्ति कभी तो, और कभी बस प्यास हूँ मैं
पत्थरों सी हूँ कभी तो, भावना का ज्वार हूँ मैं
क्या दशा कर दी ये मेरी, क्या करूँ लाचार हूँ मैं
डगमगाते से पगों को थामकर चलना सिखाऊँ
तोतली बोली को अपने प्यार भाषा बनाऊँ
जड़ को चेतन जो करे, उस प्रार्थना का सार हूँ मैं
क्या दशा कर दी ये मेरी, क्या करूँ लाचार हूँ मैं
त्रेता की अहिल्या मैं, कलयुगी फिर निर्भया मैं
काल बदले। हाल क्यों न? वक्त की स्तब्धता मैं ?
भेड़ियों की भूख मिटने के लिए बस ग्रास हूँ मैं
क्या दशा कर दी ये मेरी, क्या करूँ लाचार हूँ मैं
--मनीष
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Comments
Really true lines.....
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