Posts

Showing posts from 2020

नदी बोली समन्दर से | Kunwar Bechain

नदी बोली समन्दर से, मैं तेरे पास आई हूँ। मुझे भी गा मेरे शायर, मैं तेरी ही रुबाई हूँ।। मुझे ऊँचाइयों का वो अकेलापन नहीं भाया लहर होते हुये भी तो मेरा मन न लहराया मुझे बाँधे रही ठंडे बरफ की रेशमी काया। बड़ी मुश्किल से बन निर्झर, उतर पाई मैं धरती पर छुपा कर रख मुझे सागर, पसीने की कमाई हूँ।। मुझे पत्थर कभी घाटियों के प्यार ने रोका कभी कलियों कभी फूलों भरे त्यौहार ने रोका मुझे कर्तव्य से ज़्यादा किसी अधिकार ने रोका। मगर मैं रुक नहीं पाई, मैं तेरे घर चली आई मैं धड़कन हूँ मैं अँगड़ाई, तेरे दिल में समाई हूँ।। पहन कर चाँद की नथनी, सितारों से भरा आँचल नये जल की नई बूँदें, नये घुँघरू नई पायल नया झूमर नई टिकुली, नई बिंदिया नया काजल। पहन आई मैं हर गहना, कि तेरे साथ ही रहना लहर की चूड़ियाँ पहना, मैं पानी की कलाई हूँ। --कुँवर बेचैन  

Happy New Year-2021

Image
भोर के राग पर साँझ की ताल हो  गीत गाता हुआ ये नया साल हो बंद कमरे में अबतक कटी जिंदगी  पंख फैला सकें इतना आकाश हो घिर गया फिर चमन नफरती आग से  फिर गले मिल सकें ऐसी बरसात हो  सोचते सोचते कितनी सदियाँ गयीं  अब तो जो कुछ भी होना हो तत्काल हो 

खुली आँखों से देखी है यहाँ लोगों की अय्यारी, बहाते खून अपनों का गजब इनकी कलाकारी

Image
खुली आँखों से देखी है यहाँ लोगों की अय्यारी बहाते खून अपनों का गजब इनकी कलाकार ी कभी जाती नहीं खाली किसी मजबूर की आहें जलाकर राख कर देंगी अगर बन जायें चिंगारी जिंदगी तय करती कहाँ है आखिरी मंजिल किसे देगा खुदा दोज़द किसे जन्नत की सरदारी किसी भी नाम से उसको पुकारो सुन ही लेगा वो असर होगा दुआओं में अगर है साथ खुद्दारी  झुकाकर अपनी पलकें आख़िरत में पूछ ही लेंगे  सुनाई क्यों नहीं देती तुम्हें अश्क़ों की सदाकारी  हुए जब कान के कच्चे लगे दुश्मन सभी अपने  भिड़े हैं भाई से भाई गायब है समझदारी 

अभी वक्त लगेगा

Image
कुंदन सा ढलने में अभी वक्त लगेगा  अंदाज को बदलने में अभी वक्त लगेगा  फिलहाल मुझे रंग ने बेरंग किया है  फिर रंग में ढलने में अभी वक्त लगेगा है शौक टहलने का तो ख्वावों में ही टहलो  बागों में टहलने में अभी वक्त लगेगा  जाते हो निकलकर मेरे कूंचे से तो जाओ  इस दिल से निकलने में अभी वक्त लगेगा  फूलों का चलन कुछ और ही है मुसाफिर  इन काटों पे चलने में अभी वक्त लगेगा फिलहाल ये काफी है तुम खुद को बदल लो  दुनिया को बदलने में अभी वक्त लगेगा  हौले से अभी तेरे दिल में जो आग लगी है  शोलों को मचलने में अभी वक्त लगेगा

Lata Haya,"मैं हिंदी की वो बेटी हूँ जिसे उर्दू ने पाला है"- Ganga Jamuni

Image
मैं हिन्दी की वो बेटी हूँ, जिसे उर्दू ने पाला है अगर हिन्दी की रोटी है, तो उर्दू का निवाला है मुझे है प्यार दोनों से, मगर ये भी हकीकत है लता जब लडखडाती है, हाया ने ही सम्भाला है।  मैं जब हिन्दी से मिलती हूँ, तो उर्दू साथ आती है और जब उर्दू से मिलती हूँ, तो हिन्दी घर बुलाती है मुझे दोनों ही प्यारी है, मैं दोनों की दुलारी हूँ. इधर हिन्दी-सी माई है, उधर उर्दू-सी खाला है।  यहीं की बेटियाँ दोनों, यहीं पे जन्म पाया है. सियासत ने इन्हें हिन्दू व मुस्लिम क्यों बनाया है. मुझे दोनों की हालत एक-सी मालूम होती है कभी हिन्दी पे बंदिश है, कभी उर्दू पे ताला है।  भले अपमान हिन्दी का, हो या तौहीन उर्दू की खुदा की है कसम हरगिज, हया ये सह नहीं सकती मैं दोनों के लिए लडती हूँ, और दावे से कहती हूँ मेरी हिन्दी भी उत्तम है, मेरी उर्दू भी आला है। 

मेरे संग जय श्री राम कहो, राम मंदिर || राम मंदिर पर कविता तिवारी की कविता

Image
मन चंचल है तन व्यूहल है झंझावातों का है समूह अगणित प्रतिकूल परीक्षाएँ नित जीवन पथ लगता दुरूह विकृतियाँ कृतियों के दल का यदि फलादेश सी लगती हों संस्कृतियाँ चल विपरीत पंथ यदि मालाक्लेश सी लगती हों यदि काव्य तत्व के समीकरण संत्रास दिखाई देते हों यदि वर्तमान वाले अवगुण इतिहास दिखाई देते हों यदि मर्यादाएँ मार्ग छोड़ पथभ्रष्ट दिखाई देती हों यदि नराधमोह की अनुकृतियाँ उत्कृष्ट दिखाई देती हों कर दो विरोध के स्वर बुलंद सबके हित में परिणाम कहो निश्चित मत करो समय सीमा फिर सुबह कहो या शाम कहो तम हर अंतर्मन उज्जवल कर जय करुणाकर सुखधाम कहो यदि मुक्तिमार्ग चुनना चाहो मेरे संग जय श्री राम कहो। शुभ लक्ष्य लिए आए अतीत तब तो भविष्य के स्वप्न चुनो अन्यथा सहज पथ पर चलकर विक्षिप्त बनो निज शीश धुनो जो अन्धकार का अनुचर है अनुयायी है पथभ्रष्ट का औचित्य भला कैसे होगा ऐसे निकृष्ट परिशिष्टों का तुम याज्ञवल्क्य के वंशज हो नचिकेता जैसा तप लेकर हिरण्यकश्यप से युद्ध करो प्रह्लाद सरीखा जब लेकर धुन के जैसे पक्के वाले ध्रुव जैसे श्रेष्ट तपस्वी हो वह कृत्य करो अनुरक्ति भरो जिससे ये विश्व यशस्वी हो हों त्याज्य अशुभ कुल फलाद...

"कृष्ण की चेतावनी"-रश्मिरथी(रामधारी सिंह दिनकर)

Image
वर्षों तक वन में घूम-घूम, बाधा-विघ्नों को चूम-चूम, सह धूप-घाम, पानी-पत्थर, पांडव आये कुछ और निखर। सौभाग्य न सब दिन सोता है, देखें, आगे क्या होता है। मैत्री की राह बताने को, सबको सुमार्ग पर लाने को, दुर्योधन को समझाने को, भीषण विध्वंस बचाने को, भगवान् हस्तिनापुर आये, पांडव का संदेशा लाये। ‘दो न्याय अगर तो आधा दो, पर, इसमें भी यदि बाधा हो, तो दे दो केवल पाँच ग्राम, रक्खो अपनी धरती तमाम। हम वहीं खुशी से खायेंगे, परिजन पर असि न उठायेंगे! दुर्योधन वह भी दे ना सका, आशीष समाज की ले न सका, उलटे, हरि को बाँधने चला, जो था असाध्य, साधने चला। जब नाश मनुज पर छाता है, पहले विवेक मर जाता है। हरि ने भीषण हुंकार किया, अपना स्वरूप-विस्तार किया, डगमग-डगमग दिग्गज डोले, भगवान् कुपित होकर बोले- ‘जंजीर बढ़ा कर साध मुझे, हाँ, हाँ दुर्योधन! बाँध मुझे। यह देख, गगन मुझमें लय है, यह देख, पवन मुझमें लय है, मुझमें विलीन झंकार सकल, मुझमें लय है संसार सकल। अमरत्व फूलता है मुझमें, संहार झूलता है मुझमें। ‘उदयाचल मेरा दीप्त भाल, भूमंडल वक्षस्थल विशाल, भुज परिधि-बन्ध को घेरे हैं, मैनाक-मेरु पग मेरे हैं। दिपते जो ग्रह नक्...

अबकी नवदुर्गा

Image
पर्व,त्यौहार,व्रत और उत्सव हमारे देश के प्राण हैं,हमारी संस्कृति की आधारशिला हैं। प्रत्येक त्यौहार का एक अर्थ है, उद्देश्य है और यही कारण है कि हमारे पूर्वजों द्वारा बनाये गए व्रत और त्यौहारों की परम्परा आदिकाल से आज तक वैसी ही चली आ रही है। जैसे कि सम्पूर्ण राष्ट्र को एक सूत्र में बाँधने वाले नवरात्र।नवरात्र के कुछ रहस्य हैं या कहें विशिष्टताएँ हैं।  शक्ति के आवाह्न का उत्सव है नवरात्री,अनुशासन से आत्मशक्ति जाग्रत करने का अवसर है नवरात्री, काम-क्रोध-मद-लोभ जिंतने भी विकार हैं सबको पीछे छोड़ कर अपने मन पर विजय पाने का उत्सव है नवरात्री है। नवरात्र का अर्थ है नौ रातें। इन रातों का विशेष रहस्य है। शायद हमारे ऋषि मुनियों ने साधना के लिए दिन की अपेक्षा रात्री को अधिक महत्व(उचित) दिया यही कारण है कि हमारे कुछ बहुत बड़े त्यौहार दीपावली, शिवरात्री,नवरात्र, होलिका दहन, दशहरा आदि रात में ही मनाये जाते हैं।  सिद्धि और साधना की दृष्टि से नवरात्र बहुत महत्वपूर्ण हैं। इन नवरात्रों में समाज व्रत, सैयम, नियम, अनुशासन, भजन, यज्ञ, पूजा आदि से अपने भीतर की आध्यात्मिक शक्ति को ...

हर हर गंगे.......

Image
देवनदी गंगा के विषय में भारत के प्रत्येक जनमानस को जानकारी है। माता गंगा का पृथ्वी पर अवतरण कैसे हुआ, इससे जुडी कथाएँ सब जानते हैं किन्तु बड़े विद्वानों और हमारे पूर्वजों ने माता गंगा विषय में क्या कहा है, गंगा स्तुति, रामचरितमानस में गोस्वामी जी ने माता गंगा को किस तरह वर्णित किया है,संत कबीर के विचार आदि से आपको अवगत कराने के लिए यह लेख प्रस्तुत है। गोस्वामी तुलसीदास के विचार :  गोस्वामी जी ने गंगा  विषय में बहुत विस्तार में लिखा है, शब्दों की अपनी सीमा है। गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित छंद अनुवाद सहित।  माँ गंगा स्तुति: गोस्वामी जी की प्रसिद्ध रचना विनयपत्रिका में अंकित यह एक अद्भुद रचना है। कहने को एक छंद भर है किन्तु माता गंगा की संपूर्ण महिमा के सागर को गागर में भरता प्रतीत होता है।  जय जय भगीरथ नन्दिनि, मुनि-चय चकोर-चन्दनि,  नर-नाग-बिबुध-बन्दिनि जय जहनु बालिका।  बिस्नु-पद-सरोजजासि, ईस-सीसपर बिभासि,  त्रिपथ गासि, पुन्रूरासि, पाप-छालिका।1। बिमल बिपुल बहसि बारि, सीतल त्रयताप-हारि, भँवर बर, बिभंगतर तरंग-मालिका। पुरजन पूजोपहार, सोभित ससि धवलधार, भंजन ...

रंज कैसा है इन दुआओं में , बेबफ़ाई है क्यूँ बफाओं में।

Image
रंज कैसा है इन दुआओं में बेबफ़ाई है क्यूँ बफाओं में रो रहा है कोई कहीं शायद कुछ नमी सी है क्यूँ हवाओं में छेड़ता दिल के तार है कोई  कौन बिखरा है इन फ़िज़ाओं में  जो जुदा हो गया कभी मुझसे  गूँजता है कहीं सदाओं में  कुछ बहारें बला की थीं जिद्दी  लौट कर आ गयीं खिजाओं में  रंज कैसा है इन दुआओं में  बेबफ़ाई है क्यूँ बफाओं में।   

सच को गाकर सुनना जरूरी नहीं, प्यार है तो जताना जरूरी नहीं।

Image
सच को गाकर सुनना जरूरी नहीं प्यार है तो जताना जरूरी नहीं। खुद-ब-खुद ही छलक जायेगा आँख से दर्द कह कर बताना जरूरी नहीं जो छुपाया है वो राज खुल जायेगा  बेवजह मुस्कुराना जरूरी नहीं  तुम इशारा करो हम चले आएंगे  नाम लेकर बुलाना जरूरी नहीं है अगर प्यार तो साफ़ कह दीजिये  डरना या कसमसाना जरूरी नहीं  कोई मसला नहीं बात से हल न हो  हाथ खंजर उठाना जरूरी नहीं  तुम हमारे नहीं हो पता है हमें  याद हर पल दिलाना जरूरी नहीं अपनी सच्चाई से कब हैं अनजान हम  हम पे ऊँगली उठाना जरूरी नहीं  तुमको आना है तो आओ बाहों में तुम  रोज ख़्वाबों में आना जरूरी नहीं  खुद को क़दमों रख तो दिया आपके  अब नज़र से गिरना जरूरी नहीं 

हमें राग अपना बदलना पड़ेगा, बहुत हो चुका अब संभलना पड़ेगा

Image
अगर देश से प्यार करते हो पंडित,  अगर मुल्क़ से है मोहब्बत मियां तो हमें राग अपना बदलना पड़ेगा,  बहुत हो चुका अब संभलना पड़ेगा। अगर अब न संभले,अगर अब न बदले,  तो सब फूंक देंगे सियासत में पगले न हिंदू, न मुस्लिम, न अगले,न पिछले,  ये वोटों की गिनती,हैं कौमों में झगड़े हमें और कब तक झगड़ना पड़ेगा,  झगड़ते,झगड़ते उजड़ना पड़ेगा अगर देश से प्यार करते हो पंडित,  अगर मुल्क़ से है मोहब्बत मियां तो हमें राग अपना बदलना पड़ेगा,  बहुत हो चुका अब संभलना पड़ेगा। न कुरआन पढ़ा है,न गीता पढ़ी है, मगर ज्ञान गंगा हिमालय चढ़ी है लिखा जो नहीं वो पढ़ाया गया है, हर इक हल्फ में बरगलाया गया है किताबों को फिर से पलटना पड़ेगा, जहालत से आगे निकलना पड़ेगा अगर देश से प्यार करते हो पंडित,  अगर मुल्क़ से है मोहब्बत मियां तो हमें राग अपना बदलना पड़ेगा,  बहुत हो चुका अब संभलना पड़ेगा। मुसीबत तो ये है कि रहना है संग में, अगर बाढ़ आयी तो बहना है संग में ठिकाना तुम्हारा कहीं न हमारा, मैं मंदिर का मारा,तू मस्जिद का मारा यही सच है इसको निगलना पड़ेगा, जहर जो भरा है उगलना पड़ेगा अगर देश स...

सोचते हम रहे क्या से क्या हो गया, जीत का हार का फैसला हो गया..........

Image
सोचते हम रहे क्या से क्या हो गया जीत का हार का फैसला हो गया आखिरी साँस आ के चली भी गयी मौत से यूँ ख़तम फासला हो गया  दिल गवाही भला जा के देता कहाँ   कब कहाँ किस तरह वाकया हो गया    झूठ नज़रें चुराता रहा उम्र भर     सच हकीकत बना आइना हो गया  जिंदगी रोज तालीम देती रही  आसमां सा मेरा हौसला हो गया  उसका होना खटकता रहा बज्म को  वो जुबां से जरा जो खरा हो गया  हम भुलाते वो मंज़र भला किस तरह  देख जिसको जखम फिर हरा हो गया  सोचते हम रहे क्या से क्या हो गया  जीत का हार का फैसला हो गया 

नील गगन में इंद्र धनुष से किसने रंग बिखेरे सारे, टिम टिम तारों की भाषा में करता रहता कौन इशारे....

Image
नील गगन में इंद्र धनुष से किसने रंग बिखेरे सारे टिम टिम तारों की भाषा में करता रहता कौन इशारे। कौन मेघ बरसाकर मुझको सदा डुबोता रहता रस में मुझे सुलाने को हर संध्या डुबा रहा है कौन तमस में कौन जगाना चाहे मुझको रोज भेज रवि के उजियारे  नील गगन में इंद्र धनुष से किसने रंग बिखेरे सारे  टिम टिम तारों की भाषा में करता रहता कौन इशारे।  फूलों की डाली पर किसका सुमन सुमन बन मन खिलता है  किसका आँसू हरी दूब पर सुबह सुबह मुझको मिलता है  कौन मिलन हित रोता रहता मेरे लिए प्रकृति के द्वारे  नील गगन में इंद्र धनुष से किसने रंग बिखेरे सारे  टिम टिम तारों की भाषा में करता रहता कौन इशारे।  किसके कमल नयन छुक छुप कर मुझको रोज निहारा करते  किसके प्राण पपीहा बनकर प्रतिदिन मुझे पुकारा करते  किसको कहूँ कहानी अपनी मैं हूँ मौन लाज के मारे  नील गगन में इंद्र धनुष से किसने रंग बिखेरे सारे  टिम टिम तारों की भाषा में करता रहता कौन इशारे। 

Popular posts from this blog

बलिदान रहेगा सदा अमर मर्दानी लक्ष्मीबाई का || कविता तिवारी की कविता झांसी की रानी || Kavita Tiwari poem on Jhansi Ki Rani lyrics

टूटी माला जैसे बिखरी किस्मत आज किसान की | सुदीप भोला | किसान | Farmer's suicide

छुक छुक छुक छुक रेल चली है जीवन की || chhuk chhuk rail chali hai jeevan ki