नदी बोली समन्दर से | Kunwar Bechain

नदी बोली समन्दर से, मैं तेरे पास आई हूँ। मुझे भी गा मेरे शायर, मैं तेरी ही रुबाई हूँ।। मुझे ऊँचाइयों का वो अकेलापन नहीं भाया लहर होते हुये भी तो मेरा मन न लहराया मुझे बाँधे रही ठंडे बरफ की रेशमी काया। बड़ी मुश्किल से बन निर्झर, उतर पाई मैं धरती पर छुपा कर रख मुझे सागर, पसीने की कमाई हूँ।। मुझे पत्थर कभी घाटियों के प्यार ने रोका कभी कलियों कभी फूलों भरे त्यौहार ने रोका मुझे कर्तव्य से ज़्यादा किसी अधिकार ने रोका। मगर मैं रुक नहीं पाई, मैं तेरे घर चली आई मैं धड़कन हूँ मैं अँगड़ाई, तेरे दिल में समाई हूँ।। पहन कर चाँद की नथनी, सितारों से भरा आँचल नये जल की नई बूँदें, नये घुँघरू नई पायल नया झूमर नई टिकुली, नई बिंदिया नया काजल। पहन आई मैं हर गहना, कि तेरे साथ ही रहना लहर की चूड़ियाँ पहना, मैं पानी की कलाई हूँ। --कुँवर बेचैन  

मेरे संग जय श्री राम कहो, राम मंदिर || राम मंदिर पर कविता तिवारी की कविता





मन चंचल है तन व्यूहल है झंझावातों का है समूह

अगणित प्रतिकूल परीक्षाएँ नित जीवन पथ लगता दुरूह

विकृतियाँ कृतियों के दल का यदि फलादेश सी लगती हों

संस्कृतियाँ चल विपरीत पंथ यदि मालाक्लेश सी लगती हों

यदि काव्य तत्व के समीकरण संत्रास दिखाई देते हों

यदि वर्तमान वाले अवगुण इतिहास दिखाई देते हों

यदि मर्यादाएँ मार्ग छोड़ पथभ्रष्ट दिखाई देती हों

यदि नराधमोह की अनुकृतियाँ उत्कृष्ट दिखाई देती हों

कर दो विरोध के स्वर बुलंद सबके हित में परिणाम कहो

निश्चित मत करो समय सीमा फिर सुबह कहो या शाम कहो

तम हर अंतर्मन उज्जवल कर जय करुणाकर सुखधाम कहो

यदि मुक्तिमार्ग चुनना चाहो मेरे संग जय श्री राम कहो।


शुभ लक्ष्य लिए आए अतीत तब तो भविष्य के स्वप्न चुनो

अन्यथा सहज पथ पर चलकर विक्षिप्त बनो निज शीश धुनो

जो अन्धकार का अनुचर है अनुयायी है पथभ्रष्ट का

औचित्य भला कैसे होगा ऐसे निकृष्ट परिशिष्टों का

तुम याज्ञवल्क्य के वंशज हो नचिकेता जैसा तप लेकर

हिरण्यकश्यप से युद्ध करो प्रह्लाद सरीखा जब लेकर

धुन के जैसे पक्के वाले ध्रुव जैसे श्रेष्ट तपस्वी हो

वह कृत्य करो अनुरक्ति भरो जिससे ये विश्व यशस्वी हो

हों त्याज्य अशुभ कुल फलादेश जाग्रत होकर शुभनाम कहो

जो संस्कृति के संरक्षक हो उनको ही बस गुणधाम कहो

हों हंस वंस अवतंश श्रेष्ठ होकर सकाम निष्काम कहो

यदि मुक्तिमार्ग चुनना चाहो मेरे संग जय श्री राम कहो।


करतार उन्हें कर तार तार जो हैं कतार को तोड़ रहे

सुचिता श्रद्धा करुणा नकार अपसंस्कृतियों को जोड़ रहे

उद्देश्यपूर्ण कर दे धरती कर दे मानवता का विकास

क्षमता को दे जागरण मंत्र तम हर भर दे स्वातिक प्रकाश

तू निखिल विश्व का स्वामी है अंतर्यामी घट घट वासी

सज्जनता को कर दे विराट कर खड़ी खाट जो संत्रासी

उद्भव स्थित संहार शक्ति कुल तेरी ही तो छाया है

कहते हैं वेद पुराण ग्रन्थ तुझमें हे विश्व समाया है

कवियों भूमिका निभाओ तुम यदि लय गति छंद ललाम कह

शुद्धता युक्त परिमार्जन हो मत उनको दक्षिण वाम कहो

श्रद्धायुत नतमस्तक हो करके तत्क्षण शत बार प्रणाम कहो

यदि मुक्तिमार्ग चुनना चाहो मेरे संग जय श्री राम कहो।


CLICK HERE FOR MORE SUCH POEMS


Comments

Popular posts from this blog

बलिदान रहेगा सदा अमर मर्दानी लक्ष्मीबाई का || कविता तिवारी की कविता झांसी की रानी || Kavita Tiwari poem on Jhansi Ki Rani lyrics

जो इसकी तौहीन करेगा मिट्टी में मिल जायेगा | Kavita Tiwari | Veer Ras | Latest Kavi Sammelan | जब स्वदेश का बच्चा बच्चा वन्दे मातरम गायेगा

नदी बोली समन्दर से | Kunwar Bechain