Posts

Showing posts from June, 2021

नदी बोली समन्दर से | Kunwar Bechain

नदी बोली समन्दर से, मैं तेरे पास आई हूँ। मुझे भी गा मेरे शायर, मैं तेरी ही रुबाई हूँ।। मुझे ऊँचाइयों का वो अकेलापन नहीं भाया लहर होते हुये भी तो मेरा मन न लहराया मुझे बाँधे रही ठंडे बरफ की रेशमी काया। बड़ी मुश्किल से बन निर्झर, उतर पाई मैं धरती पर छुपा कर रख मुझे सागर, पसीने की कमाई हूँ।। मुझे पत्थर कभी घाटियों के प्यार ने रोका कभी कलियों कभी फूलों भरे त्यौहार ने रोका मुझे कर्तव्य से ज़्यादा किसी अधिकार ने रोका। मगर मैं रुक नहीं पाई, मैं तेरे घर चली आई मैं धड़कन हूँ मैं अँगड़ाई, तेरे दिल में समाई हूँ।। पहन कर चाँद की नथनी, सितारों से भरा आँचल नये जल की नई बूँदें, नये घुँघरू नई पायल नया झूमर नई टिकुली, नई बिंदिया नया काजल। पहन आई मैं हर गहना, कि तेरे साथ ही रहना लहर की चूड़ियाँ पहना, मैं पानी की कलाई हूँ। --कुँवर बेचैन  

अब तो हो गया बंटाधार पड़ रही महँगाई की मार.....

Image
अब तो हो गया बंटाधार पड़ रही महँगाई की मार महँगाई की मार सबका भला करे करतार भिंडी भौहें तान रही है,आलू आँख तरेरे लौकी बैंगन तोरई कद्दू, मूली तक मुँह फेरे पालक को तो चढ़ा बुखार सबका भला करे करतार। लड्डू बर्फी वर्षों से थाली में थे ही किसके हलवा पूड़ी खीर कचौड़ी धीरे धीरे खिसके अब चटनी भी हुई फरार सबका भला करे करतार। बोरा भर नोटों के बदले चुटकी भर लो हींग गुड़ गायब थाली से जैसे गधे के सिर से सींग राई सौ रुपये की चार सबका भला करे करतार। रेट सुना जब शक्कर का तो पर्स को आया चक्कर दाल के दाने निकल पड़े चावल से लेने टक्कर चावल ने खींची तलवार सबका भला करे करतार। बढ़ा किराया देख दिसंबर भी लगता है जून नया कपल हनीमून मनाने निकला देहरादून लेकिन पहुँच गया हरिद्वार सबका भला करे करतार। नल्ले मानुस काम न धंधा बैठे खाली रूम पेट्रोल दारू दाम बराबर घूमो या लो झूम केवल जुमलों की सरकार सबका भला करे करतार।

जो इसकी तौहीन करेगा मिट्टी में मिल जायेगा | Kavita Tiwari | Veer Ras | Latest Kavi Sammelan | जब स्वदेश का बच्चा बच्चा वन्दे मातरम गायेगा

Image
( पूरी कविता सुनें  ) राष्ट्र भक्ति का दीप जलाना सबको अच्छा लगता है जन गण मन का गीत सुहाना सबको अच्छा लगता है जननी जन्मभूमि प्राणों से बढ़कर प्यारी होती है देशवासियों की खातिर सुरभित फुवारी होती है फिर प्रश्न खड़े होते हैं जगह जगह विस्फोटों से माँ तेरी संतानों को कैसी लाचारी होती है जब स्वदेश का बच्चा बच्चा वन्दे मातरम गायेगा कोई भी आतंकी कैसे उग्रवाद अपनाएगा अपना पूज्य तिरंगा नभ में फहर फहर फरायेगा जो इसकी तौहीन करेगा मिट्टी में मिल जायेगा। आओ करें प्रतिज्ञा हम सब गौरवशाली भाषा में क्यों जिन्दा हैं सिर्फ तिजोरी भरने की अभिलाषा में क्यों अपने मन में औरों की खातिर पीर नहीं होती एक सरीखी दुनिया में सबकी तकदीर नहीं होती अरे मौत के सौदागर ओ नीच अधम हत्यारे सुन मरने के जो संग चले ऐसी जागीर नहीं होती अगर निरीह प्राणियों पर भी दया नहीं दिखलायेगा धरती माता के दमन में गहरे दाग लगाएगा है इतिहास गवाह कसम से रोयेगा पछतायेगा जो इसकी तौहीन करेगा मिट्टी में मिल जायेगा। सुप्त मानसिकताएँ आओ मिलकर उन्हें जगाएँ हम देशप्रेम की अविरल धारा को मिलकर अपनाएँ हम खुरापात जिनके मन में है ...

सबसे करबद्ध निवेदन है, "बोलो भारत माता की जय" | Kavita Tiwari | देशभक्ति कविता

Image
( पूरी कविता सुनें )  माँ धरती धरती है संयम सहती है खुद पर प्रबल भार कितने भी कोई जुल्म करे पर नही कभी मानती नहीं हार इस वसुंधरा पर अखिल विश्व जिसकी भौगोलिक भाषा है प्रत्येक खण्ड में सजे देश उन सब की यही अभिलाषा है हर एक देश को नाज़ रहा सच्चा है अथवा झूठा है कर्तव्यों और उपायों से निर्मित सम्मान अनूठा है निज आर्यवर्त की ओर ध्यान आकृष्ट कराने आई हूँ कुछ शब्द सुमन वाली कविता स्वागत में चुनकर लायी हूँ अपने अतीत का ज्ञान तत्व हम सबको यह बतलाता है नीतियाँ समर्पण वाली हों तो इतिहास अमर हो जाता है चाहे हो कलुषित भाव किन्तु दिखलादो अपना सरल हृदय सबसे करबद्ध निवेदन है,"बोलो भारत माता की जय"। छः ऋतुओं वाला श्रेष्ठ देश दुनिया का सबसे ज्येष्ठ देश अध्ययन करने पर पाओगे पूरी वसुधा पर है बिशेष सभ्यता जहाँ पर जिंदा है पूजे जाते हैं संस्कार कल कल करती पवित्र पावन नदियाँ ले धवल धार हिमवान किरीट बना जिसका उत्तर में प्रहरी के समान दक्षिण में सिंधु पखार चरण देता रहता है अभयदान पूरव में खाड़ी का गौरव सीमा को रक्षित करता है पश्चिम में अपना अरब सिंधु निज गुरुता का दम भरता है त्योहार अनूठे लगते ह...

राहों में भी रिश्ते बन जाते हैं, ये रिश्ते भी मंजिल तक जाते हैं | Pramod Tiwari

Image
( पूरी कविता सुनें ) राहों में भी रिश्ते बन जाते हैं, ये रिश्ते भी मंजिल तक जाते हैं, आओ तुमको एक गीत सुनाते हैं, रिश्तों की खुशबू में नहलाते हैं। मेरे घर के आगे एक खिड़की थी, खिड़की से झाँका करती लड़की थी, इक रोज मैंने यूँ हीं टाफी खाई, फिर जीभ निकाली उसको दिखलाई, गुस्से में वो छज्जे पर आन खड़ी, आँखों ही आँखों मुझसे बहुत लड़ी, उसने भी फिर टाफी मँगवाई थी, आधी झूठी करके भिजवाई थी। वो झूठ टाफी अब भी मुँह में है, हो गई सुगर हम फिर भी खाते हैं। राहों में भी रिश्ते बन जाते हैं, ये रिश्ते भी मंजिल तक जाते हैं। दिल्ली की बस्ती मेरे बाजू में, इक गोरी-गोरी बिल्ली बैठी थी, बिल्ली के उड़ते रेशमी बालों से, मेरे दिल की चुहिया कुछ ऐंठी थी, चुहिया ने उस बिल्ली को काट लिया, बस फिर क्या था बिल्ली का ठाट हुआ, वो बिल्ली अब भी मेरे बाजू है, उसके बाजू में मेरा राजू है। अब बिल्ली,चुहिया,राजू सब मिलकर मुझको ही मेरा गीत सुनाते हैं। राहों में भी रिश्ते बन जाते हैं, ये रिश्ते भी मंजिल तक जाते हैं। एक दोस्त मेरा सीमा पर रहता था, चिट्ठी में जाने क्या-क्या कहता था, उर्दू आती थी नहीं मुझे लेकिन, उसक...

ये है हिंदुस्तान हमारा प्यारा हिंदुस्तान | Anjum Rehbar | System

Image
जीना है दुश्वार यहाँ पर मरना है आसान ये है हिंदुस्तान हमारा प्यारा हिंदुस्तान। भाषाएँ भी हुई सियासी गुंडों का हथियार तुलसी,मीर,कबीर की कीमत दो पैसों में चार फुटपाथों पर भटक रहे हैं गालिब और रसखान ये है हिंदुस्तान हमारा प्यारा हिंदुस्तान। बहरे बैठे सुने दादरा गूंगे गीत सुनाएँ पागल सबकी करे पैरवी अंधे चित्र बनाएँ चोर उचक्के का होता है रोज़ यहाँ सम्मान ये है हिंदुस्तान हमारा प्यारा हिंदुस्तान। फूलों जैसे होठों पर भी ज़हर भरी नफ़रत है बिजली के खंभों पर पीली और हरी नफरत है लाल रंग में डूब गए हैं सब खादी के थान ये है हिंदुस्तान हमारा प्यारा हिंदुस्तान। सबसे ऊँचे लोग हैं वो जो कुर्सी के बन्दे हैं कैसा मंदिर कैसी नस्जिद सब इनके धंधे हैं ठोकर में ईमान है इनकी जेबों में भगवान ये है हिंदुस्तान हमारा प्यारा हिंदुस्तान। नोटों की पटरी पर चलती है वोटों की रेल बी ए पास मिलें चपरासी मंत्री चौथी फेल दीवारों पर यहाँ लिखा है समय बड़ा बलवान ये है हिंदुस्तान हमारा प्यारा हिंदुस्तान। पूरी कविता सुनें:

हम धरती पुत्र बिहारी हैं| Shambhu Shikhar| Bihar Gaurav Geet

Image
हम श्रमनायक हैं भारत के,और मेधा के अवतारी हैं। हम सौ पर भारी एक पड़ें,हम धरती पुत्र बिहारी हैं। वेदों के कितने बंध रचे,हमनें गायत्री छंद रचे साहित्य-सरित की धारा में,कितने ही काव्य प्रबंध रचे हम दिनकर-रेणु-बाणभट्ट,विद्यापति और भिखारी हैं हम धरती पुत्र बिहारी हैं,हम धरती पुत्र बिहारी हैं। सत्ता जब मद में चूर हुई,हम जयप्रकाश बनकर डोले 'सिंहासन खाली करो कि जनता आती है'दिनकर बोले हम सिखों के दशमेश गुरु,बिरसा मुंडा अवतारी हैं हम धरती पुत्र बिहारी हैं,हम धरती पुत्र बिहारी हैं। पहला-पहला गणतंत्र दिया,और अर्थशास्त्र का मंत्र दिया नालंदा से हमनें जग को,शिक्षा का पहला मंत्र दिया गिनती को शून्य दिया हमनें,गणनाएँ भी बलिहारी हैं हम धरती पुत्र बिहारी हैं,हम धरती पुत्र बिहारी हैं। मैथिली-अंगिका-भोजपूरी,हम लोकगूंज किलकारी हैं दुनिया पूजे धन की देवी,हम सरस्वती के पुजारी हैं जिसके आगे बौना पहाड़,दशरथ मांझी धुनधारी हैं हम धरती पुत्र बिहारी हैं,हम धरती पुत्र बिहारी हैं। शहनाई जिसपर नाज़ करे,बिस्मिल्लाह ख़ान हम ही तो हैं शारदा लोकशैली गायक,सुर की पहचान हम ही तो हैं दुनिया पूजे उगता सूरज,हम ढलत...

मजदूर

Image
मजदूर गरीबी और खुद्दारी की एक स्पष्ट अभिव्यक्ति है  वो अभावों में रहने वाला सबसे ईमानदार व्यक्ति है  उन्हीं अभावों में कुछ लोग चोर लुटेरे जुआरी बन जाते हैं  कुछ खोकर अपनी खुद्दारी शर्म भिखारी बन जाते हैं  पेट की भूख अच्छे अच्छों का गुरूर तोड़ देती है  भूख ईमानदार के ईमान की धारा को मोड़ देती है  उतनी ही गरीबी के मारे कुछ लोग ओढ़कर खुद्दारी की चादर   बनके मजदूर 2 जून की रोटी कमाते हैं स्वेद बहाकर  जब संपन्न कहते हैं खुद को खुद्दार, वो उनकी सहूलियत है  मुफलिसी में ये गुण बना रहे तब मानो असलियत है  अभावों में ईमानदारी और खुद्दारी सबसे मुश्किल काम है  मजदूर इन विसंगतियों में सामंजस्य का दूसरा नाम है 

टूटी माला जैसे बिखरी किस्मत आज किसान की | सुदीप भोला | किसान | Farmer's suicide

Image
जो देता है खुशहाली,जिसके दम से हरियाली आज वही बर्बाद खड़ा है,देखो उसकी बदहाली। बहुत बुरी हालत है ईश्वर,धरती के भगवान की टूटी माला जैसे बिखरी किस्मत आज किसान की। ऐसी आंधी चली की घर का तिनका तिनका बिखर गया आखिर धरती माँ से उसका प्यारा बेटा बिछड़ गया अखबारो की रद्दी बनकर बिकी कथा बलिदान की टूटी माला जैसे बिखरी किस्मत आज किसान की। इतना सूद चुकाया उसने की अपनी सुध भूल गया सावन के मौसम में झूला लगा के फाँसी झूल गया अमुवा की डाली पर देखो लाश टंगी ईमान की टूटी माला जैसे बिखरी किस्मत आज किसान की। एक अरब पच्चीस करोड़ की भूख जो रोज मिटाता है कह पता नही वो किसी से जब भूखा सो जाता है फिर सीने पर गोली खाता सरकारी सम्मान की टूटी माला जैसे बिखरी किस्मत आज किसान की। किसी को काले धन की चिंता किसी को भ्रष्टाचार की मगर लड़ाई कौन लड़ेगा फसलों के हक़दार की सरे आम बाजार में इज्जत लुट जाती खलिहान की टूटी माला जैसे बिखरी किस्मत आज किसान की। जो अपने कांधे पर देखो खुद हल लेकर चलता है आज उसी की कठनाई का हल क्यों नही निकलता है है जिससे उम्मीद उन्हें बस चिंता है मतदान की टूटी माला जैसे बिखरी किस्मत आज किसान की।...

मैं अच्छा इंसान नहीं हूँ , सच मानो

Image
मैं अच्छा इंसान नहीं हूँ , सच मानो। जितना प्यार मिला है जग से, उतना जग को, दिया नहीं है। इस दुनिया की खातिर मैंने,  सच में कुछ भी किया नहीं है ।  जितने ज्यादा पाप किए हैं, उतना पुण्य कमा ना पाया।  जितने कागज़ लिख लिख फाड़े,  उतने पेड़ लगा ना पाया।  शिक्षा हूँ बस, ज्ञान नहीं हूँ, सच मानो।  था परमार्थ दिखावा केवल,  भीतर, स्वार्थ अगाध छुपा था।  जब पंछी को चुग्गा डाला,  तब अंतस में व्याध छुपा था।  कोई चाह अधूरी होगी,  जिसने फिर जन्माया मुझको।  कोई कर्ज बकाया होगा,  जो दुनिया में लाया मुझको ।  शाप हूँ मैं, वरदान नहीं हूँ, सच मानो।  मैं अच्छा इंसान नहीं हूँ , सच मानो।

जाने कब छल जाये उमरिया क्षण दो क्षण को प्यार करो....

Image
  कैसा बैर कहाँ के बैरी आपस में मत खार करो जाने कब छल जाये उमरिया क्षण दो क्षण को प्यार करो। कितना अच्छा था बेचारा कल सीढ़ी से फिसल गया वो भी अच्छा था कल जिसको भरा हुआ ट्रक कुचल गया जीवन का एक लम्हा देखो उम्र समूची निगल गया  अच्छे अच्छे दमदारों का चुटकी में दम निकल गया  क्षण भंगुर ये उजियारा है किरणों का सत्कार करो  जाने कब छल जाये उमरिया क्षण दो क्षण को प्यार करो।  चाहे मन को समझाओ पर समझाने से क्या होगा  उस पर यह भी सच है आँसू ढुलकने से क्या होगा  पहले ही  सोचा होता अब पछताने से क्या होगा  वो तो चला गया अब उसके गुण  गाने से क्या होगा  मत लाशों पर फूल चढ़ाओ जीते जी श्रृंगार करो  जाने कब छल जाये उमरिया क्षण दो क्षण को प्यार करो।  किसने अपने अंतर्मन को सच्चे मन से तौला है  उसने नहीं मगर क्या तुमने अपना ह्रदय टटोला है  संबंधों का ठोस धरातल क्यों अंदर से पोला है  दिल से दिल की क्यों अनबन है घर घर आज अबोला है  हर गूँगे पल के अंतस में गुंजन का संचार करो  जाने कब छल जाये उमरिया क्षण दो क्षण को प्यार करो।...

चल गुबार को निकाल

Image
मौन दुःख के संग क्यों  उड़ा उड़ा ये रंग क्यों  मिटी मिटी उमंग क्यों  बुझी बुझी तरंग क्यों  तामस के खार को निकाल  चल गुबार को निकाल  चल गुबार को निकाल। ढह गया सो बह गया  सह गया वो रह गया  मिल गया सो कह गया  वही दिखा जो हो गया  नए विचार को निकाल  चल गुबार को निकाल चल गुबार को निकाल। जी रही मरी मरी  बानी है जो डरी डरी  सुना उसे खरी खरी  वही है जो हरी भरी  उसी बहार को निकाल  चल गुबार को निकाल चल गुबार को निकाल। धड़क धड़क ये वक्ष है  कि प्रश्न प्रश्न यक्ष है  ये एक अंध कक्ष है  शत्रु भी समक्ष है  अब तो कटार को निकाल  चल गुबार को निकाल चल गुबार को निकाल मद भरा प्रमाद है  तो विष भरा विषाद है  वही सृजन का वाद है  स्वयं का जो निनाद है  पथिक पुकार को निकाल  चल गुबार को निकाल चल गुबार को निकाल।

तन्हाई में जब जब तेरी यादों से मिला हूँ, महसूस हुआ है कि तुझे देख रहा हूँ...

Image
तन्हाई में जब जब तेरी यादों से मिला हूँ  महसूस हुआ है कि तुझे देख रहा हूँ।  ऐसा भी नहीं है कि तुझे याद करूँ मैं  आदत है मेरी गम से जरा खेल रहा हूँ।  हालाँकि दहकते हुए शोलों पे खड़ा हूँ  क्यों ख़ाक अभी तक न हुआ सोच रहा हूँ।  हिम्मत है तो कर दे मुझे तूफाँ के हवाले  मौजों से कहो आज मैं साहिल पे खड़ा हूँ।  वो लोग अभी जश्न बनाने में हैं मशरूफ  मैं जिनको बचाने के लिए क़त्ल हुआ हूँ।  तलवार पे खुद मैंने ही  सर रख दिया अपना  मालूम है मुझको कि मैं सच बोल रहा हूँ।  इस भीड़ में अपना नज़र आये कोई मुझको  मैं गुमशुदा बच्चे की तरह खौफजदा हूँ।  शायद ये तकब्बुर की सजा मुझको मिली है  उभरा था बड़ी शान से अब डूब रहा हूँ। 

Popular posts from this blog

बलिदान रहेगा सदा अमर मर्दानी लक्ष्मीबाई का || कविता तिवारी की कविता झांसी की रानी || Kavita Tiwari poem on Jhansi Ki Rani lyrics

टूटी माला जैसे बिखरी किस्मत आज किसान की | सुदीप भोला | किसान | Farmer's suicide

छुक छुक छुक छुक रेल चली है जीवन की || chhuk chhuk rail chali hai jeevan ki