नदी बोली समन्दर से | Kunwar Bechain

नदी बोली समन्दर से, मैं तेरे पास आई हूँ। मुझे भी गा मेरे शायर, मैं तेरी ही रुबाई हूँ।। मुझे ऊँचाइयों का वो अकेलापन नहीं भाया लहर होते हुये भी तो मेरा मन न लहराया मुझे बाँधे रही ठंडे बरफ की रेशमी काया। बड़ी मुश्किल से बन निर्झर, उतर पाई मैं धरती पर छुपा कर रख मुझे सागर, पसीने की कमाई हूँ।। मुझे पत्थर कभी घाटियों के प्यार ने रोका कभी कलियों कभी फूलों भरे त्यौहार ने रोका मुझे कर्तव्य से ज़्यादा किसी अधिकार ने रोका। मगर मैं रुक नहीं पाई, मैं तेरे घर चली आई मैं धड़कन हूँ मैं अँगड़ाई, तेरे दिल में समाई हूँ।। पहन कर चाँद की नथनी, सितारों से भरा आँचल नये जल की नई बूँदें, नये घुँघरू नई पायल नया झूमर नई टिकुली, नई बिंदिया नया काजल। पहन आई मैं हर गहना, कि तेरे साथ ही रहना लहर की चूड़ियाँ पहना, मैं पानी की कलाई हूँ। --कुँवर बेचैन  

Engineering Students Farewell Poem



ये साल कुछ बेमिसाल जा रहा था
 
छोड़कर अधूरे से सवाल जा रहा था
 
शब्द तो बहुत कम हैं मेरे पास
 
सीनियर्स की बोली मैं कहूँ तो बवाल जा रहा था

 

पर कुछ तो बात होती है न यारों
 
कल तक जिनको बस सीनियर्स कहते थे उनसे भी लगाव हो जाता है
 
कॉलेज छोड़ने का घाव हो जाता है 
मगर जानता हूँ कह कौन पता है 

इंजीनियरिंग के इन सालों में रोज कोसते थे 
अरे यही क्यों लिया बस ये सोचते थे 
पर इसने भी कुछ तो जीना सिखाया है 
जिंदगी क्या है इसका आइना दिखाया है 

दोस्त मिले अजीब से मगर जान बन गए 
जब भी जरूरत पड़ी तो मेहरबान बन गए 
धुप सी लगी तो आसमान बन गए 
अपना न दिखा कोई तो दूसरा जहान बन गए 

हुई नोक-झोंक भी तीखी थी 
शायद इससे भी एक बात सीखी थी 
कि इंजीनियर बनाना जानता है बिगाड़ना नहीं 
और बंदी किसी और की हो तो ताड़ना नहीं। 

कईओं को अपने जोड़े मिले 
तो कुछ ने भाईचारे में काट दिए 
उनकी तो कुछ पूछ लो यार 
सिंगल ही चार साल उस बेचारे ने निकाल दिए 

लाइफ में कुछ faculty भी थे 
चंगु और मांगू को झेलना 
अपनी मजबूरी की गाडी को पेलना 
सच में बहुत मुश्किल है पर इसी से तो अपनी मंज़िल है। 

कुछ लोग उम्दा थे 
तो कुछ में कारीगरी थी 
स्किल्स की तो क्या कमी होगी  
मनो सारे टैलेंट की पोटली SGM में पड़ी थी। 

-----सर के ------से 
------सर/मैडम  की -----तक 
------सर के डांस से 
------सर की सिंगिंग तक 

चाहे SGM की क्लास हो या फेस्ट की मस्ती 
मिल जाते थे जहाँ भी  मनो भूले अपनी हस्ती
सब कुछ याद जुबानी है 
आखिर ये अपनी भी तो कहानी है। 

इतिहास गवाह है इंजीनियरिंग ने भले ही नौकरी न दी हो
पर ये जिंदगी शायद ही किसी ने जी हो 
याद रखना ये वक्त एक साजिश है 
जीवन की चौसर पर खुद की आजमाइश है। 

सीनियर्स इतने अच्छे मिले 
क्या हम भी ऐसे बन पाएंगे
आखिर हम भी तो कॉलेज से एक रोज़ जायेंगे 
पर सच कहूं SGM को नहीं भुलायेंगे 

आज आखिरी दिन है 
फिर भी आपको क्या दे पाएंगे 
अफ़सोस तो बस इतना है 
कि गले लगकर अलविदा न कह पाएंगे।  
 
                                                                                                          ---Manish Mahawar

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