नदी बोली समन्दर से | Kunwar Bechain

नदी बोली समन्दर से, मैं तेरे पास आई हूँ। मुझे भी गा मेरे शायर, मैं तेरी ही रुबाई हूँ।। मुझे ऊँचाइयों का वो अकेलापन नहीं भाया लहर होते हुये भी तो मेरा मन न लहराया मुझे बाँधे रही ठंडे बरफ की रेशमी काया। बड़ी मुश्किल से बन निर्झर, उतर पाई मैं धरती पर छुपा कर रख मुझे सागर, पसीने की कमाई हूँ।। मुझे पत्थर कभी घाटियों के प्यार ने रोका कभी कलियों कभी फूलों भरे त्यौहार ने रोका मुझे कर्तव्य से ज़्यादा किसी अधिकार ने रोका। मगर मैं रुक नहीं पाई, मैं तेरे घर चली आई मैं धड़कन हूँ मैं अँगड़ाई, तेरे दिल में समाई हूँ।। पहन कर चाँद की नथनी, सितारों से भरा आँचल नये जल की नई बूँदें, नये घुँघरू नई पायल नया झूमर नई टिकुली, नई बिंदिया नया काजल। पहन आई मैं हर गहना, कि तेरे साथ ही रहना लहर की चूड़ियाँ पहना, मैं पानी की कलाई हूँ। --कुँवर बेचैन  

गज़ल

अब वो हमे नया जख्म लगाने वाले हैं,
  
किसी ने कहा था उनसे हम मुस्कुराने वाले हैं।

अभी अभी तो एतबार किया है उनपर,
अभी कुछ देर में वो दिल दुखाने वाले हैं।


हम क्यों देखें गर्म सूरज का ये घमण्ड, 
हम लोग तो दिया जलाने वाले हैं।

हम भी झूठ पर ऐतबार करना सीख रहे हैं, 
कोई कह रहा था कि चुनाव आने वाले हैं। 
 
बेगुनाह हो के भी सजा काट रहा हूँ मैं,
क्योंकि कातिल मुंशी के अपने वाले हैं।    

अपने किरदार से कुछ कम कर रहा हूँ मैं , 
पता चला है वो हमे आज़माने वाले हैं। 

सुबह सुबह तो मजहब पर बहस हुई है, 
शाम तक देख ये दंगे भड़काने वाले हैं। 

जरूरत खत्म होने पर रिश्ता तोड़ लेते हैं, 
पता था अपने नहीं किराये वाले हैं।  

तेज बारिश में नहाने का सूकून तो वही जानें, 
हम लोग तो कच्चे मकानों वाले हैं।



Comments

  1. तेज बारिश में नहाने का सूकून तो वही जानें,
    हम लोग तो कच्चे मकानों वाले हैं।
    This line 👌👌

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