नदी बोली समन्दर से | Kunwar Bechain

नदी बोली समन्दर से, मैं तेरे पास आई हूँ। मुझे भी गा मेरे शायर, मैं तेरी ही रुबाई हूँ।। मुझे ऊँचाइयों का वो अकेलापन नहीं भाया लहर होते हुये भी तो मेरा मन न लहराया मुझे बाँधे रही ठंडे बरफ की रेशमी काया। बड़ी मुश्किल से बन निर्झर, उतर पाई मैं धरती पर छुपा कर रख मुझे सागर, पसीने की कमाई हूँ।। मुझे पत्थर कभी घाटियों के प्यार ने रोका कभी कलियों कभी फूलों भरे त्यौहार ने रोका मुझे कर्तव्य से ज़्यादा किसी अधिकार ने रोका। मगर मैं रुक नहीं पाई, मैं तेरे घर चली आई मैं धड़कन हूँ मैं अँगड़ाई, तेरे दिल में समाई हूँ।। पहन कर चाँद की नथनी, सितारों से भरा आँचल नये जल की नई बूँदें, नये घुँघरू नई पायल नया झूमर नई टिकुली, नई बिंदिया नया काजल। पहन आई मैं हर गहना, कि तेरे साथ ही रहना लहर की चूड़ियाँ पहना, मैं पानी की कलाई हूँ। --कुँवर बेचैन  

हाय रे क्या होगा हिंदुस्तान


कचरा है सिस्टम सारा
रिश्वत अमृत की धारा
नेता से सारे परेशान
हाय रे क्या होगा हिंदुस्तान।

आयी है कहाँ से दौलत किसका व्यापार बनके
चोरी करके भी बैठे ये इज़्ज़तदार बनके
नैया डुबोने वाले बैठे पतवार बनके
चारा और नोट भाई सड़कें पुल तोपें खायी
खाये शहीदों के मकान
हाय रे क्या होगा हिंदुस्तान।

मोटर और बंगला मांगे संग में अधिकार मांगे
खाकर पच जाये सारा ऐसी डकार मांगे
दिल्ली से अपने घर तक खुद की सरकार मांगें
किस्मत बना दी इनकी अस्मत लुटती जन जन की
करते नंगाई दिखा शान
हाय रे क्या होगा हिंदुस्तान।

कब बम कहाँ फट जाये कोई न जान पाए
इतना उत्पादन फिर क्यों महंगाई बढ़ती जाये
हालत अराजक फिर भी कैसी तरक्की हाय
खाओ खिलाओ फंडा ये ही सबका एजेंडा
घायल तिरंगे पे निशान
हाय रे क्या होगा हिंदुस्तान।

कचरा है सिस्टम सारा
रिश्वत है अमृत धारा
नेता से सारे परेशान
हाय रे क्या होगा हिंदुस्तान।

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