नदी बोली समन्दर से | Kunwar Bechain

नदी बोली समन्दर से, मैं तेरे पास आई हूँ। मुझे भी गा मेरे शायर, मैं तेरी ही रुबाई हूँ।। मुझे ऊँचाइयों का वो अकेलापन नहीं भाया लहर होते हुये भी तो मेरा मन न लहराया मुझे बाँधे रही ठंडे बरफ की रेशमी काया। बड़ी मुश्किल से बन निर्झर, उतर पाई मैं धरती पर छुपा कर रख मुझे सागर, पसीने की कमाई हूँ।। मुझे पत्थर कभी घाटियों के प्यार ने रोका कभी कलियों कभी फूलों भरे त्यौहार ने रोका मुझे कर्तव्य से ज़्यादा किसी अधिकार ने रोका। मगर मैं रुक नहीं पाई, मैं तेरे घर चली आई मैं धड़कन हूँ मैं अँगड़ाई, तेरे दिल में समाई हूँ।। पहन कर चाँद की नथनी, सितारों से भरा आँचल नये जल की नई बूँदें, नये घुँघरू नई पायल नया झूमर नई टिकुली, नई बिंदिया नया काजल। पहन आई मैं हर गहना, कि तेरे साथ ही रहना लहर की चूड़ियाँ पहना, मैं पानी की कलाई हूँ। --कुँवर बेचैन  

प्यार क्या है ?




प्रेम से ही धरा प्रेम से ही गगन
प्रेम से ही तो जीवन का आधार है
लव ये चुप ही रहे आँखें सब कुछ कहें
तब समझना प्रिय हाँ यही प्यार है।

उसकी बिंदिया चमकता सितारा लगे
दुनिया मझधार और वो किनारा लगे
वो हँसे चाँद की चाँदनी की तरह
उसके बिन न कहीं दिल तुम्हारा लगे
बिंदिया झुमके और कंगन भी फीके लगें
जब लगे सादगी उसका श्रृंगार है।

लव ये चुप ही रहे आँखें सब कुछ कहें
तब समझना प्रिय हाँ यही प्यार है।

राज़ की सारी बातें बताये  तुम्हें
हर दुआ में वही याद आये तुम्हें
हर उदासी वो पहचान ले बिन कहे
कर के नादानियाँ फिर हँसाये तुम्हें
उसकी यादों में खुद को भुलाने लगो
और लगे उस पे मेरा ही अधिकार है।

लव ये चुप ही रहे आँखें सब कुछ कहें
तब समझना प्रिय हाँ यही प्यार है।

इन लवों पर सदा मुस्कराहट रहे
उसके सपनों की पलकों पे आहट रहे
भावना के क्षितिज पे हो मन का मिलन
सिर्फ तन के मिलान की न चाहत रहे
तुम जो कान्हा बनो राधिका वो लगे
बज उठे मन में वीणा की झंकार है।

लव ये चुप ही रहे आँखें सब कुछ कहें
तब समझना प्रिय हाँ यही प्यार है।

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