साँस लेते हुए फूलों का मोअ-त्तर साया
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साँस लेते हुए फूलों का मोअ-त्तर साया
एक मुद्दत से कहाँ ऐसा मयस्सर साया
मेरी तकदीर तो है हिज़्र की बे-मेहर ये धूप
और होंगे कि हुआ जिनका मुकद्दर साया
इन सुकून-बख्श फ़िज़ाओं से खबरदार ऐ दिल
किश्त-ए-ज़रखेज को कर जाता है बंज़र साया
ये जरूरी तो नहीं नूर से रौशन हो बजूद
देखो मा-दूम हुआ होके मुनव्वर साया
मेरी कोताह कदी मुझको जताने के लिए
आ गया फिर मेरी कामत के बराबर साया
ताकि हिजरत की कड़ी धूप में तन्हाई न हो
आ गया साथ मेरे घर से निकलकर साया
वक्त-ए-रुखसत जो मेरा ज़ाद-ए-सफर ठहरी थीं
उन दुआओं का नहीं अब मेरे सर पर साया
वो मेरे शहर में ठहरे भी तो इतना ठहरे
जैसे परवाज़ के दौराम ज़मीं पर साया
मोअ-त्तर: सुगंधित
मयस्सर: मिलना
बे-मेहर: जिसमें ममता न हो, निर्दय
किश्त-ए-ज़रखेज: अच्छी उपजाऊ वाली जमीन
मा-दूम: गायब
मुनव्वर: जगमग, प्रकाशित, रोशन, उज्ज्वल, कांति, वैभवशाली
कोताह कदी: कम कद
कामत: आकार, कद
ज़ाद-ए-सफर: सफर का सहारा
परवाज़: उड़ान
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