Teacher's Day
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लेकिन नैय्या डूब रही है कष्टों के मंझधार में
कूल कहाँ प्रतिकूल, हिलोरें मार रहा ठहरा पानी
गूढ़ गति काया से निकसी स्वतः गति जब जानी।
तब दाता ने मुझको हिम्मत की परिभाषा बतलायी
अन्धकार में छिपे मणिक की परछायी तब दिखलाई
देख कथानक थर्राया मैं काँप उठा पछतावे में
गुरु की महिमा जान पढ़ी तो रो बैठा सन्नाटे में।
गुरु की दीक्षा ऐसी है जो न मिलती अख़बारों में
वो शब्दों की दीपशिखा है अँधियारे गलियारों में
वो जीवन का राजदूत है, सकल राष्ट्र निर्माता है
न जाने इसके बदले में क्या कुछ वो पा जाता है
नहीं दिया है उसको कुछ भी, शर्मसार जाता हूँ
इसीलिए मैं दुनिया को गुरु की महिमा बतलाता हूँ।
कोमल हृदयी उस मानव ने हम सबको ही अपनाया है
धर्म जाति का भेद भुलाकर सबको गले लगाया है
प्रेम,प्रतिज्ञा,धैर्य,मर्म का पाठ हमें बतलाया है
त्याग,तपस्या, देशभक्ति मंचन भी सिखलाया है
ऐसी मूरत पाकर मैं धन्य धन्य हो जाता हूँ ,
इसीलिए मैं दुनिया को गुरु की महिमा बतलाता हूँ।
गुरु को पंक्ति में बाँध सकूँ, मेरी इतनी औकात कहाँ
उस अमृत के सम्मुख मेरे विष की बिसात कहाँ
लेकिन उस पारस ने मुझको कंचन बना दिया
अपने सान्निध्य में लेकर मुझको मानव बना दिया।
--मनीष महावर
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