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नदी बोली समन्दर से | Kunwar Bechain

नदी बोली समन्दर से, मैं तेरे पास आई हूँ। मुझे भी गा मेरे शायर, मैं तेरी ही रुबाई हूँ।। मुझे ऊँचाइयों का वो अकेलापन नहीं भाया लहर होते हुये भी तो मेरा मन न लहराया मुझे बाँधे रही ठंडे बरफ की रेशमी काया। बड़ी मुश्किल से बन निर्झर, उतर पाई मैं धरती पर छुपा कर रख मुझे सागर, पसीने की कमाई हूँ।। मुझे पत्थर कभी घाटियों के प्यार ने रोका कभी कलियों कभी फूलों भरे त्यौहार ने रोका मुझे कर्तव्य से ज़्यादा किसी अधिकार ने रोका। मगर मैं रुक नहीं पाई, मैं तेरे घर चली आई मैं धड़कन हूँ मैं अँगड़ाई, तेरे दिल में समाई हूँ।। पहन कर चाँद की नथनी, सितारों से भरा आँचल नये जल की नई बूँदें, नये घुँघरू नई पायल नया झूमर नई टिकुली, नई बिंदिया नया काजल। पहन आई मैं हर गहना, कि तेरे साथ ही रहना लहर की चूड़ियाँ पहना, मैं पानी की कलाई हूँ। --कुँवर बेचैन  

चलो कि हम ज़िन्दगी की नज़रें बचाके बस एक पल चुरा लें

  न जानते थे कि इस क़यामत की बंदिशों में हयात होगी  कि ज़िक्र-ए-हिज़्र-ओ-विसाल होगा न आरज़ूओं की बात होगी  चलो कि हम ज़िन्दगी की नज़रें बचाके बस एक पल चुरा लें  कि इस रिफ़ाक़त की एक साथ ही हासिल-ए-क़ायनात होगी  ये भीगती शाम मेरी पलकों पे फिर सितारे सजा रही है  उतरने वाली किसी की यादों के जुगनुओं की बरात होगी  गिरा है बाजार-ए-आफ़तावी में फिर किसी माह-रू का झुमका  सहेलियाँ मिलके ढूँढ लाएँगीं जब जरा और रात होगी  बिछी हुई हैं हजार आँखें हजार अहवाल-ए-मुन्तज़िर हैं  सुना तो है आप आ रहे हैं मगर कहाँ हमसे बात होगी  कोई उठे और उठके चेहरे को मेहर-ए-ताबाँ के ढाँप आये  है इनका कहना कि रात है ये तो ठीक है फिर ये रात होगी  हयात - जिंदगी ज़िक्र-ए-हिज़्र-ओ-विसाल - मिलने बिछुड़ने की बातें रिफ़ाक़त - दोस्ती बाजार-ए-आफ़तावी - चाँद की रोशनी में लगा बाजार माह-रू - चाँद जैसे चेहरे वाली अहवाल-ए-मुन्तज़िर - इंतज़ार में बेचैन मेहर-ए-ताबाँ - सूरज जैसा चमकीला

मेरे साथ चलो

  दिल में तौकीर-ए-बशर है तो मेरे साथ चलो  कुछ मोहब्बत में असर है तो मेरे साथ चलो  हौसल दिल में अगर है तो मेरे साथ चलो  तुमको मंजूर सफर है तो मेरे साथ चलो  बज्म-ए-कातिल से गुजरना है खुदा खैर करे  देखो पत्थर का जिगर है तो मेरे साथ चलो रात तारीक है और प्यार का रास्ता है तवील  तुमको तन्हाई का डर है तो मेरे साथ चलो  मैं अंधेरों का मुसाफिर हूँ मुझे क्या मालूम  तुमको उम्मीद-ए-सहर है तो मेरे साथ चलो मैं हकीकत से तुम्हें आशना कर सकता हूँ  जिंदगी ख्वाब अगर है तो मेरे साथ चलो

वो आए हैं ये ख्वाब है मालूम नहीं क्यूँ.......

वो आए हैं ये ख्वाब है मालूम नहीं क्यूँ  रंगीं शब-ए-महताब है मालूम नहीं क्यूँ दिल खुश भी है बेताब है मालूम नहीं क्यूँ  हर आरजू एक ख्वाब है मालूम नहीं क्यूँ  जिस आँख में खिलती थीं कभी ख्वाब की कलियाँ कब ये यूँ ही बेख्वाब है मालूम नहीं क्यूँ  वो देख रहे हैं मुझे चाहत की नज़र से  दिल और भी बेताब है मालूम नहीं क्यूँ।  वो भी तो नज़र आते हैं शरमाये हुए से  हर वक्त यही ख्वाब है मालूम नहीं क्यूँ  वो आए हैं ये ख्वाब है मालूम नहीं क्यूँ  रंगीन शब-ए-महताब है मालूम नहीं क्यूँ 

आ भी जा आने वाले........

आ भी जा आने वाले दिल भी है दीवाना भी  आँखों में बेखाबी है खाली है पैमाना भी। क्या जाने तू हम कैसे तन्हाई में जीते हैं  साँसों में शोले गम के लव पे तेरा अफसाना है। दिल ही था अपना हमदम वो भी तूने छीन लिया  आँसू हैं अब दामन में ले जा ये नज़राना भी। पलकों पर आँसू गम के तेरी याद में ठहरे हैं  अच्छा है तू आ जाये खत्म हो ये अफसाना भी। आ भी जा आने वाले दिल भी है दीवाना भी  आँखों में बेखाबी है खाली है पैमाना भी।  

आदमी हैं हम किसी के पालतू तोते नहीं

 हम तो पिंजरों को परों पर रात दिन ढोते नहीं  आदमी हैं हम किसी के पालतू तोते नहीं  क्यों मेरी आँखों में आंसू आ रहे हैं आपके  आप तो कहते थे कि पत्थर कभी रोते नहीं  दिल के बंटवारे से बन जाती हैं घर में सरहदें  सरहदों से दिल के बंटवारे कभी होते नहीं 

सपेरा बीन बजायेगा नाग फिर फन फैलाएगा.....

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                                            सूरज निकला धूप न निकली बादल ने भी केंचुली बदली  हवा बाँध कर हाथ खड़ी है बीच बीच में चमके बिजली  राजनीति का मौसम जब ये खेल दिखायेगा  देश समूचा नागिन की धुन में लहराएगा  सपेरा बीन बजायेगा नाग फिर फन फैलाएगा  लंगड़े चढ़े पहाड़ों पर हैं,अंधरे खड़े किबाड़ों पर हैं  गूँगे के सुर में सुर साधे,लूले खड़े नगाड़ों पर हैं  बहरा जब फ़रियाद सुनेगा कैंप लगाएगा  सपेरा बीन बजायेगा नाग फिर फन फैलाएगा  दीन धर्म असहाय खड़े हैं,मंदिर मस्जिद बने पड़े हैं  गीता और कुरआन जबानी जिसको देखो रटे पड़े हैं  साधु जब अपने आश्रम में पकड़ा जायेगा  सपेरा बीन बजायेगा नाग फिर फन फैलाएगा    लोकतंत्र का सीधा फंडा पीठ हमारी उनका डंडा  मुर्गा या मुर्गी भी देगी रोज सुबह सोने का अंडा  इस अंडे का आमलेट नेता ही खायेगा   सपेरा बीन बजायेगा नाग फिर फन फैलाएगा

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