चलो कि हम ज़िन्दगी की नज़रें बचाके बस एक पल चुरा लें
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न जानते थे कि इस क़यामत की बंदिशों में हयात होगी
कि ज़िक्र-ए-हिज़्र-ओ-विसाल होगा न आरज़ूओं की बात होगी
चलो कि हम ज़िन्दगी की नज़रें बचाके बस एक पल चुरा लें
कि इस रिफ़ाक़त की एक साथ ही हासिल-ए-क़ायनात होगी
ये भीगती शाम मेरी पलकों पे फिर सितारे सजा रही है
उतरने वाली किसी की यादों के जुगनुओं की बरात होगी
गिरा है बाजार-ए-आफ़तावी में फिर किसी माह-रू का झुमका
सहेलियाँ मिलके ढूँढ लाएँगीं जब जरा और रात होगी
बिछी हुई हैं हजार आँखें हजार अहवाल-ए-मुन्तज़िर हैं
सुना तो है आप आ रहे हैं मगर कहाँ हमसे बात होगी
कोई उठे और उठके चेहरे को मेहर-ए-ताबाँ के ढाँप आये
है इनका कहना कि रात है ये तो ठीक है फिर ये रात होगी
हयात - जिंदगी
ज़िक्र-ए-हिज़्र-ओ-विसाल - मिलने बिछुड़ने की बातें
रिफ़ाक़त - दोस्ती
बाजार-ए-आफ़तावी - चाँद की रोशनी में लगा बाजार
माह-रू - चाँद जैसे चेहरे वाली
अहवाल-ए-मुन्तज़िर - इंतज़ार में बेचैन
मेहर-ए-ताबाँ - सूरज जैसा चमकीला
Comments
बेहतरीन रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर।
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