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Showing posts from March, 2022

नदी बोली समन्दर से | Kunwar Bechain

नदी बोली समन्दर से, मैं तेरे पास आई हूँ। मुझे भी गा मेरे शायर, मैं तेरी ही रुबाई हूँ।। मुझे ऊँचाइयों का वो अकेलापन नहीं भाया लहर होते हुये भी तो मेरा मन न लहराया मुझे बाँधे रही ठंडे बरफ की रेशमी काया। बड़ी मुश्किल से बन निर्झर, उतर पाई मैं धरती पर छुपा कर रख मुझे सागर, पसीने की कमाई हूँ।। मुझे पत्थर कभी घाटियों के प्यार ने रोका कभी कलियों कभी फूलों भरे त्यौहार ने रोका मुझे कर्तव्य से ज़्यादा किसी अधिकार ने रोका। मगर मैं रुक नहीं पाई, मैं तेरे घर चली आई मैं धड़कन हूँ मैं अँगड़ाई, तेरे दिल में समाई हूँ।। पहन कर चाँद की नथनी, सितारों से भरा आँचल नये जल की नई बूँदें, नये घुँघरू नई पायल नया झूमर नई टिकुली, नई बिंदिया नया काजल। पहन आई मैं हर गहना, कि तेरे साथ ही रहना लहर की चूड़ियाँ पहना, मैं पानी की कलाई हूँ। --कुँवर बेचैन  

आ भी जा आने वाले........

आ भी जा आने वाले दिल भी है दीवाना भी  आँखों में बेखाबी है खाली है पैमाना भी। क्या जाने तू हम कैसे तन्हाई में जीते हैं  साँसों में शोले गम के लव पे तेरा अफसाना है। दिल ही था अपना हमदम वो भी तूने छीन लिया  आँसू हैं अब दामन में ले जा ये नज़राना भी। पलकों पर आँसू गम के तेरी याद में ठहरे हैं  अच्छा है तू आ जाये खत्म हो ये अफसाना भी। आ भी जा आने वाले दिल भी है दीवाना भी  आँखों में बेखाबी है खाली है पैमाना भी।  

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