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Showing posts from February, 2022

नदी बोली समन्दर से | Kunwar Bechain

नदी बोली समन्दर से, मैं तेरे पास आई हूँ। मुझे भी गा मेरे शायर, मैं तेरी ही रुबाई हूँ।। मुझे ऊँचाइयों का वो अकेलापन नहीं भाया लहर होते हुये भी तो मेरा मन न लहराया मुझे बाँधे रही ठंडे बरफ की रेशमी काया। बड़ी मुश्किल से बन निर्झर, उतर पाई मैं धरती पर छुपा कर रख मुझे सागर, पसीने की कमाई हूँ।। मुझे पत्थर कभी घाटियों के प्यार ने रोका कभी कलियों कभी फूलों भरे त्यौहार ने रोका मुझे कर्तव्य से ज़्यादा किसी अधिकार ने रोका। मगर मैं रुक नहीं पाई, मैं तेरे घर चली आई मैं धड़कन हूँ मैं अँगड़ाई, तेरे दिल में समाई हूँ।। पहन कर चाँद की नथनी, सितारों से भरा आँचल नये जल की नई बूँदें, नये घुँघरू नई पायल नया झूमर नई टिकुली, नई बिंदिया नया काजल। पहन आई मैं हर गहना, कि तेरे साथ ही रहना लहर की चूड़ियाँ पहना, मैं पानी की कलाई हूँ। --कुँवर बेचैन  

आदमी हैं हम किसी के पालतू तोते नहीं

 हम तो पिंजरों को परों पर रात दिन ढोते नहीं  आदमी हैं हम किसी के पालतू तोते नहीं  क्यों मेरी आँखों में आंसू आ रहे हैं आपके  आप तो कहते थे कि पत्थर कभी रोते नहीं  दिल के बंटवारे से बन जाती हैं घर में सरहदें  सरहदों से दिल के बंटवारे कभी होते नहीं 

सपेरा बीन बजायेगा नाग फिर फन फैलाएगा.....

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                                            सूरज निकला धूप न निकली बादल ने भी केंचुली बदली  हवा बाँध कर हाथ खड़ी है बीच बीच में चमके बिजली  राजनीति का मौसम जब ये खेल दिखायेगा  देश समूचा नागिन की धुन में लहराएगा  सपेरा बीन बजायेगा नाग फिर फन फैलाएगा  लंगड़े चढ़े पहाड़ों पर हैं,अंधरे खड़े किबाड़ों पर हैं  गूँगे के सुर में सुर साधे,लूले खड़े नगाड़ों पर हैं  बहरा जब फ़रियाद सुनेगा कैंप लगाएगा  सपेरा बीन बजायेगा नाग फिर फन फैलाएगा  दीन धर्म असहाय खड़े हैं,मंदिर मस्जिद बने पड़े हैं  गीता और कुरआन जबानी जिसको देखो रटे पड़े हैं  साधु जब अपने आश्रम में पकड़ा जायेगा  सपेरा बीन बजायेगा नाग फिर फन फैलाएगा    लोकतंत्र का सीधा फंडा पीठ हमारी उनका डंडा  मुर्गा या मुर्गी भी देगी रोज सुबह सोने का अंडा  इस अंडे का आमलेट नेता ही खायेगा   सपेरा बीन बजायेगा नाग फिर फन फैलाएगा

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